चमेली (Jasmine)
चमेली का परिचय: (introduction of Chameli)
चमेली क्या है? (What is Chameli)
आज हम बात करेंगे चमेली के बारे में जिसे लोग अंग्रेजी में जैसमिन नाम से भी जानते है| इसका प्रयोग लोग अधिकतर सजावट, इत्र, खुशबूदार द्रव, आदि रूप में करते है| लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि इसी चमेली का प्रयोग आयुर्वेद में रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है|
चमेली की खुशबु सभी लोग काफी अच्छी तरह पहचानते है| लोग इसे घर के आसपास या घर के आँगन में लगाना बहुत पसंद करते है| इसकी खुशबु में इतनी क्षमता होती है कि तनाव से ग्रसित व्यक्ति को भी तनाव से मुक्त कर देती है| इसी प्रकार इसके अन्य भागों का उपयोग कर के रोगों का उपचार किया जाता है|
यह वात, पित्त और कफ को संतुलित कर शरीर में से सभी रोगों को बाहर निकाल देती है| आइये आपको परिचित कराते है इसके दिव्य गुणों से| फूलों के आधार पर इसे दो भागों में बांटा गया है|
चमेली की प्रजातियाँ (Chameli ki prajatiya)
- सफ़ेद फूल वाली चमेली
- पीले फूल वाली चमेली
सफ़ेद फूल वाली चमेली का बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान)
चमेली एक प्रकार की लता होती है| एक पौधा अधिकतम 18 साल तक फूल दे सकता है| यह जमीन पर भी फ़ैल सकता है| इसके पत्तें आगे से लम्बे और थोड़े नुकीले होते है| बहुत ही अच्छी खुशबु लिए हुए इसके फूल हल्के गुलाबी या सफ़ेद रंग के होते है| इसके फल जब पक जाते है तो कुछ काले और आकार में गोल दिखाई पड़ते है| वैसे तो यह पूरे साल हरा भरा रहता है लेकिन मार्च से अगस्त में यह ज्यादा खिलता है|
पीले फूल वाली चमेली का बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान)
सफ़ेद चमेली और पीली चमेली में कुछ ज्यादा अंतर नही रहता है| इसके पत्तों का आकार अलग हो सकता है| इसके अलावा इसके फूलों का रंग पीला होता है|
चमेली के सामान्य नाम (Chameli common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Jasminum grandiflorum |
अंग्रेजी (English) | Spanish jasmine |
हिंदी (Hindi) | चमेली, चम्बेली, चंबेली |
संस्कृत (Sanskrit) | जनेष्टा, सौमनस्यनी, जाति, सुमना, चेतिका, हृद्यगन्धा, राजपुत्रिका |
अन्य (Other) | मालोतो (उड़िया) यास्मीन (उर्दू) चम्बेली (गुजराती) जाजी (तेलुगु) लहरे चमेली (नेपाली) |
कुल (Family) | Oleaceae |
चमेली के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Chameli ke ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | त्रिदोषशामक (balance tridosha) |
रस (Taste) | तिक्त (bitter), कषाय (astringent) |
गुण (Qualities) | लघु (light), स्निग्ध (oily) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | व्रणरोपक, व्रणशोधक, वाजीकारक |
चमेली के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Chameli ke fayde or upyog)
कुष्ठ रोग में (Chameli for leprosy)
- कुष्ठ रोग एक त्वचा से जुड़ा हुआ रोग है जो विभिन्न प्रकार होते है| लगभग सभी त्वचा रोगों को आयुर्वेद में कुष्ठ रोग के अंतर्गत रखा गया है| चमेली के फूलों का कल्क बना कर उसे प्रभावित स्थान पर लगाने से त्वचा रोगों का शमन होता है|
- इसके अलावा आप इसके फूलों के साथ चन्दन का भी उपयोग कर सकते है| इससे त्वचा रोगों के कारण होने वाली खुजली का भी शमन होता है|
- इसकी जड़ से निर्मित क्वाथ का सेवन करने से कुष्ठ में लाभ मिलता है|
घाव की सूजन करने में और घाव को भरने में (Chameli for wound)
- यदि इसके पत्तों का काढ़ा बना कर घाव को उससे धोया जाता है तो घाव जल्दी भरता है| इसके साथ ही घाव के कारण आने वाली सूजन का भी शमन होता है|
दांतों के दर्द को खत्म करे चमेली का प्रयोग (Chameli for teeth)
- बच्चों के दांतों का कमजोर होना एक बहुत सामान्य बात है| लेकिन उन्हें मजबूत बनना उतना ही कठिन| चमेली का प्रयोग कर के आप दांतों और मसूड़ो दोनों को ही मजबूत बना सकते है| आप इसका काढ़ा बना कर कुल्ला कर सकते है|
सिर दर्द का शमन करे (Chameli for headache)
- गुल रोगन और इस औषधि के पत्तों को अच्छे से एक साथ मिला कर इन्हें पीस लें| अब इसे एक से दो बूंद नाक में डाल दें| ऐसा करने से सिर दर्द में थोड़े ही समय में आराम मिलता है|
लकवे की स्थिति में फायदेमंद चमेली का प्रयोग (Chameli for paralysis)
- यदि आप इसकी जड़ का लेप बना कर लगाते है या इससे निर्मित तेल की मालिश करते है तो आपको लकवे में लाभ मिलेगा|
वातरोग का समापन करे
- इस का सेवन करने या तेल की मालिश प्रभावित स्थान पर करने से वात के कारण होने वाले दर्द का समापन किया जा सकता है|
मानसिक रोगों में
- चमेली के तेल की बालों में अच्छी तरह से मालिश करने से व्यक्ति तनाव मुक्त होता है और इसके साथ ही मानसिक समस्याओं का भी निवारण किया जा सकता है|
कान दर्द होने पर (Chameli for ear)
- कान दर्द के साथ ही यदि कान बहने की भी समस्या हो तो तिल के तेल में चमेली के पत्तों को अच्छे से उबाल लें| अब इस तेल की यदि एक से दो बूंद भी कान में डाली जाती है तो कान का बहना और कान दर्द दोनों ही बंद होते है|
- यदि इसके पत्तों के रस को गोमूत्र के साथ हल्का गर्म कर के एक से दो बूंद डाला जाता है तो कान दर्द का समापन होता है|
- इसके अलावा इसके तेल में एलुआ मिला कर यदि कान में डाला जाता है तो कंडू (खुजली) का शमन हो जाता है|
मोतियाबिंद में
- इस औषधि के फूल के पंखो में मिश्री मिलाकर इन्हें अच्छे से घोंट कर यदि लगाया जाता है तो मोतियाबिंद का शमन होता है|
मूत्र रोगों में लाभदायक चमेली (Chameli for urinary disease)
- मूत्र त्यागते समय जलन, कठिनाई, दर्द, रुक रुक कर मूत्र का आना आदि समस्याएँ आयें तो चमेली का प्रयोग करने से जल्द ही आपको इन रोगों से राहत मिलेगी|
पेट के कीड़ों का शमन करे
- पीसे हुए पत्तों का सेवन यदि इस अवस्था में किया जाता है तो पेट के कीड़ों का समापन होता है| इसे आप पानी के साथ भी ले सकते है|
कब्ज़ को दूर करे चमेली का प्रयोग (Chameli for constipation)
- कब्ज़ को दूर करने में इसकी जड़ की छाल का काढ़ा एक अच्छी भूमिका निभाता है| इसका सेवन उचित समय तक करने से कब्ज़ की समाप्ति होती है|
सूजन में (Chameli for swelling)
- सूजन की समस्या होने पर इसके पत्तों से बनते हुए क्वाथ की भाप को लेकर हल्का गर्म सेक करना चाहिए| इसके अलावा आप क्वाथ से प्रभावित स्थान को धो भी सकते है|
कैंसर में (Chameli for cancer)
- जैसमीन में कैंसर को रोकने वाले गुण पाए जाते है| इस गुण के कारण ही इसका प्रयोग कैंसर जैसे रोगों में किया जाता है| कैंसर में इसका प्रयोग कर के आप इससे बचाव कर सकते है|
मुंह के छालों और दुर्गन्ध को दूर करे चमेली का सेवन (Chameli for mouth ulcers)
- इन दोनों तरह की समस्याओं से निपटने के लिए आप इसके पत्तों का काढ़ा बना कर कुल्ला कर सकते है| इसके अलावा आप इसके पत्तों को मुंह में रख कर चबा भी सकते है|
- पटोल, निम्बू, जामुन, आम तथा जैसमीन के पत्तों का काढ़ा बना कर कुल्ला और गरारे करने से भी छाले और दुर्गन्ध का शमन होता है|
पेट दर्द का शमन करें (Chameli for stomach ache)
- थोडा सा रुई का टुकड़ा ले कर उसे गर्म चमेली के तेल में डाल कर नाभि पर रखने से पेट दर्द दूर होता है तथा पाचन सम्बन्धी समस्या भी दूर होती है|
उदावर्त में
- उदावर्त की समस्या को दूर करने के लिए इसकी जड़ का काढ़ा बना कर पीना चाहिए| इससे यह समस्या बहुत जल्द खत्म होती है|
नपुसंकता दूर करे
- यदि जैसमीन के फूलों का लेप इन्द्रिय पर किया जाता है तो इससे वीर्य विकार दूर होते है तथा नपुसंकता भी दूर होती है|
मासिक धर्म की समस्याओं में (Chameli for menstrual problem)
- इसके फूलों को पीस कर उसका लेप बना कर नाभि और कटि पर लगाया जाता है तो मासिक धर्म की समस्याओं में लाभ पहुँचता है|
- इसके अलावा आप इसके पञ्चांग के काढ़े का सेवन कर भी इन समस्याओं से निजात पा सकते है|
उपदंश रोग में
- राल चूर्ण और इसके पत्तों के रस को मिलाकर पीने से उपदंश में लाभ मिलता है|
- इसके अलावा आप इसके पत्तों का काढ़ा बना कर घाव को धो सकते है इससे भी उपदंश में लाभ मिलेगा|
पैरों की एडियाँ फटने पर
- जैसमीन के पत्तों के रस को फटी एडियों पर लगाने से एडियों के घाव भरने लगते है|
बुखार में चमेली का प्रयोग (Chameli for fever)
- आंवला, यवासा, नागरमोथा और जैसमीन के पत्र को बराबर मात्रा ले कर काढ़ा बनाये| इस काढ़े में गुड़ डाल कर आप इसे पी सकते है| इसका सेवन दिन में दो बार करना चाहिए| इससे बहुत जल्द बुखार उतर जायेगा|
नकसीर में लाभ दे चमेली (Chameli for blood bile)
- कटु पटोलपत्र, मालती पत्र, नीमपत्र, लाल और सफ़ेद चन्दन तथा पठानी लोध्र का काढ़ा बना कर इसमें शहद और मिश्री डाल कर पीने से नकसीर की समस्या से छुटकारा मिलता है|
जलन में
- इसके तेल को यदि जलन वाले स्थान पर लगाया जाता है तो जलन कम होती है|
एसिडिटी में (Chameli for acidity)
- यदि आपको एसिडिटी की शिकायत रहती है जिसके कारण आपको खट्टी डकार, सीने में जलन महसूस होती रहती है तो ऐसे में आप चमेली का प्रयोग कर सकते है|
उल्टी में (Chameli for vomit)
- यदि आप जैसमीन के पत्तें तथा काली मिर्च का सेवन करते है तो उल्टी बंद होगी और व्यक्ति को आराम मिलेगा|
उपयोगी अंग (भाग) (important parts of Chameli)
- जड़
- पत्ती
- फूल
- तेल
सेवन मात्रा (Dosages of Chameli)
- चूर्ण -1 से 3 ग्राम तक
- क्वाथ- 50 से 100 ml
सावधानियाँ-
- चमेली का ज्यादा मात्रा में सेवन पित्त प्रधान लोगो के लिए सिर दर्द का कारण बन सकता है|
चमेली से निर्मित औषधियां
- जात्यादि तेल
- जात्याद्य घृत
- जात्यादि वर्ती