अपामार्ग (Apamarg)
अपामार्ग का परिचय: (Introduction of Apamarg)
अपामार्ग क्या है? (Apamarg kya hai?)
यह एक बहुत ही साधारण सा पौधा होता है जो बहुत ही आसानी से देखने को मिल जाता है| अधिकतर लोग अपामार्ग को एक सामान्य पौधे के रूप में जानते है लेकिन वे इस बात से अभी तक अनजान है कि जिस पौधे को वे जितना सामान्य समझ रहे है वह उतना ही फायदेमंद और काम है|
आयुर्वेद में इसे एक अच्छी और फायदेमंद जड़ी बूटी का दर्जा प्राप्त होता है| इसका सेवन कर के कई प्रकार के विकारों का शमन किया जा सकता है| इसे मुख्य रूप से दांतों के रोग और अधिक भूख लगने पर प्रयोग किया जाता है| इसका सेवन यदि इन रोगों में किया जाता है तो यह बहुत अच्छे परिणाम देता है|
जब बारिश होती है तो इसे कई जगहों पर देखा जा सकता है| यह बारिश के मौसम में अधिक फलता फूलता है| आइये आपको भी इससे होने वाले फायदों से परिचित कराते ताकि आप भी आसानी से इसका फायदा उठा सकते है| यह मुख्य रूप से पांच प्रकार की होती है जिसमे से सफ़ेद अपामार्ग को सबसे उत्तम माना जाता है|
अपामार्ग की प्रजातियाँ (Apamarg ki prajatiya)
- सफ़ेद अपामार्ग
- लाल अपामार्ग
- अपामार्गी या गिरी अपामार्ग
- रक्तपुष्पामार्ग
- पक्षपत्रापामार्ग
सफ़ेद अपामार्ग का बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Safed Apamarg ki akriti)
इसका मध्यम आकार का पौधा होता है| इसका तना कुछ लाल बैंगनी रंग जैसा दिखाई पड़ता है| इसके पत्तें विभिन्न आकार के होते है| इसके फल कई बार कपड़ों पर लग जाते है| बीज लाल भूरे रंग के होते है जो नीचे से गोल और ऊपर से बेलन के आकार के पाए जाते है| इसके फूल और फल अगस्त से नवम्बर के मध्य आते है|
लाल अपामार्ग का बाह्य स्वरुप (Lal Apamarg ki akriti)
इसका पौधा सफ़ेद अपामार्ग से कुछ कम ऊँचा होता है| तना बेलन के आकार का पाया जाता है| इसके पत्तें बहुत साधारण होते है जो लगभग तीन सेंटीमीटर तक चोदे होते है|
अपामार्गी का बाह्य स्वरुप (Apamargi ki akriti)
इसका पौधा लगभग एक मीटर से भी ऊँचा होता है| पत्तें अंडाकार होते है| इसके फूलों का रंग लाल और फूल लम्बे होते है| इसके पञ्चांग का प्रयोग अपामार्ग में कई जगह किया जाता है| इसके पञ्चांग का सेवन काफी लाभदायक होता है|
रक्तपुष्पामार्ग का बाह्य स्वरुप (Raktpushpamarg ki akriti)
यह एक कमजोर पौधा होता है जिसकी ऊंचाई लगभग एक मीटर तक हो सकती है| इसे फसलों के साथ उगने वाले खरपतवार के रूप में जाना जाता है| इसका पञ्चांग कई जगह प्रयोग में लिया जाता है| इसमें अपामार्ग से कम गुण होते है|
पक्षपत्रापामार्ग यह अपामार्ग की तरह ही दिखता है लेकिन इसके गुण कुछ अल्प होते है| कभी कभी अपामार्ग के स्थान पर इसके पञ्चांग का उपयोग भी किया जाता है|
अपामार्ग के सामान्य नाम (Apamarg common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Achyranthes aspera |
अंग्रेजी (English) | Washerman’s plant, Rough chaff flower, The prickly-chaff flower |
हिंदी (Hindi) | चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा |
संस्कृत (Sanskrit) | अपामार्ग, शिखरी, अधशल्य, मयूरक, मर्कटी, दुर्ग्रहा, किणिही, खरमंजरी, प्रत्यक्फूली |
अन्य (Other) | अपंग (असमिया) कान्टमोग्रो (कोंकणी) चिरचिटी (बंगाली) दतिवन (नेपाली) |
कुल (Family) | Amaranthaceae |
लाल अपामार्ग के सामान्य नाम (Apamarg common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Cyathula prostrata |
अंग्रेजी (English) | Purple princess, Prostrate pasture weed, Pastureweed |
हिंदी (Hindi) | लाल चिरचिटा, लाल-चिचींडा |
संस्कृत (Sanskrit) | रक्तापामार्ग, वृन्तफल, वशिर, मरकटपिप्पली, कपिपिप्पली |
अन्य (Other) | उत्तरनी (कन्नड़) चिरुकटालाती (तमिल) चेरुकाटालाटी (मलयालम) भुइ घड्डा (मराठी) |
कुल (Family) | Amaranthaceae |
अपामार्ग के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Apamarg ke ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | कफवातशामक (pacifies cough and vata) |
रस (Taste) | कटु (pungent), तिक्त (bitter) |
गुण (Qualities) | लघु (light), रुक्ष (dry), तीक्ष्ण (strong) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | शोथहर, लेखन, विषघ्न, रेचन, दीपन |
अपामार्ग के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Apamarg ke fayde or upyog)
बार बार या अधिक भूख लगने पर (Apamarg for over eating)
- ज्यादा भूख लगना कई बार हमारे मोटापे को बढ़ाता है| कुछ लोग ऐसे भी होते है जो थोड़ी थोड़ी देर में पूरे दिन खाना खाते रहते है| आयुर्वेद में इसे भस्मक रोग भी कहा जाता है| ऐसे में यदि इसके बीजों से बनी हुई खीर का सेवन किया जाता है तो इस समस्या से आराम मिलता है|
- इस समस्या में इसके बीजों का चूर्ण काफी लाभदायक होता है आप इसे मिश्री के साथ भी खा सकते है| इसके सेवन आपका वजन भी नियंत्रित रहता है|
दांतों से जुडी समस्या में लाभदायक अपामार्ग का सेवन (Apamarg for teeth)
- दांतों में दर्द होने पर इसके रस से यदि रुई को निकाल कर दांतों के बीच रखा जाता है तो इससे दांत दर्द का शमन होता है|
- यदि आपके दांत बार बार हिलते है, मसूड़े कमजोर है, उनसे खून निकलता है तो ऐसे में आप इसकी जड़ का दातुन कर सकते है| इससे आपके दांत और मसूड़ों को मजबूती मिलेगी| इसके साथ ही सांसों के साथ आने वाली बदबू का भी शमन होता है|
त्वचा रोगों में (Apamarg for skin)
- गंभीर चोट के घाव भरने के काफी वक्त लगता है जिसके चलते घाव में संक्रमण होने का खतरा भी बना रहता है| इस औषधि के रस का प्रयोग आप घाव को संक्रमण से बचने और घाव जल्दी भरने के लिए कर सकते है|
- हरताल और इस औषधि से बनी भस्म को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है| इसके अलावा इसकी जड़ से बने हुए काढ़े से यदि घाव को धोया जाता है तो इससे भी घाव में लाभ मिलता है|
- बबूल का कांटा यदि चुभ जाये तो ऐसे में इस औषधि का पेस्ट बना कर लगाने से लाभ प्राप्त होता है|
- औजार की लग जाने पर इस औषधि की जड़ से सिद्ध किये हुए तेल को घाव पर लगाने से काफी आराम मिलता है|
- कुष्ठ रोग में सरसों के तेल और चिरचिटा की भस्म को मिलाकर शरीर पर लगाने से कुष्ठ रोग का शमन होता है| कुष्ठ में मूली के बीजों के साथ इस औषधि का रस मिलाकर लगाने से अतिशय लाभ मिलता है|
- शरीर पर चलने वाली खुजली को इस औषधि के पञ्चांग से बने हुए काढ़े से नहा कर समाप्त किया जा सकता है|
- त्वचा पर फोड़े फुंसी होने पर इसके पत्रों से बने पेस्ट को लगाना चाहिए| इससे फोड़े और फुंसियों का शमन होता है|
- इस औषधि का सेवन कर के सूजन और दर्द में भी आराम लिया जा सकता है|
खून की कमी पूरी करे (Apamarg for anemia)
- इस औषधि का सेवन आपके शरीर में होने वाली खून की कमी को पूरा कर पाने में सहायता करता है| इसका सेवन करने से शरीर में उपस्थित हीमोग्लोबिन की वृद्धि होती है जिसके चलते खून भी बढ़ता है| इतना ही नहीं यह खून को साफ़ करने में भी सहायता करता है|
मूत्र रोगों में (Apamarg for urinary disease)
- मूत्र त्यागते समय कई लोगो को कठिनाई आती है जिसमे दर्द, जलन, बैचेनी आदि शामिल होते है| ऐसे में लाल चिरचिटा के पत्तों से बने हुए काढ़े में शक्कर मिला कर पीने से मूत्र रोगों का शमन होता है|
जोड़ो के दर्द में (Apamarg for joints pain)
- जोड़ो में सूजन और दर्द की समस्या होने पर इसके पत्तों या जड़ का पेस्ट बना कर उसे गर्म कर के प्रभावित जोड़े पर बंधना चाहिए| इसके साथ यदि आप इसके जड़ के काढ़े का सेवन भी करते है तो इससे जल्दी लाभ मिलने की संभावना और भी बढ़ जाती है|
प्रदर की समस्या का समाधान करे अपामार्ग
- इस औषधि के रस का विधिपूर्वक उपयोग करने से रक्तप्रदर की समस्या में लाभ लिया जा सकता है| यदि आप सफ़ेद पानी से परेशान है तो इसके पञ्चांग का प्रयोग आपके लिए लाभदायक साबित हो सकता है|
अस्थमा और खांसी को दूर करे (Apamarg for asthma and cough)
- खांसी में इसकी जड़ का प्रयोग करने से लाभ मिलता है| काली मरीच और चिरचिटा की जड़ का चूर्ण बना कर एक साथ मिलाकर खाने से खांसी में फायदा मिलता है| काली खांसी का शमन करने के लिए चिरचिटा के पञ्चांग की भस्म को मधु के साथ लेना चाहिए|
- अपामार्ग के सूखे हुए पत्तों के धुंए को लेने से अस्थमा की समस्या में आराम मिलता है|
बवासीर में (Apamarg for piles)
- खूनी बवासीर में इस औषधि के पत्तों और काली मरीच के चूर्ण को दिन में दो बार पानी के साथ लेने से बवासीर या अर्श में लाभ मिलता है|
- चावल के पानी के साथ इस औषधि की जड़ का चूर्ण बना कर मिला लें| इस द्रव को छान कर मधु के साथ लेने से बवासीर की समस्या का शमन होता है|
पथरी को बाहर निकाले (Apamarg for calculus)
- चिरचिटा की जड़ को पानी के साथ लेने से मूत्राशय की पथरी टूट कर मूत्र के साथ मूत्रमार्ग द्वारा बाहर निकल जाती है|
- इस औषधि के पञ्चांग से बने काढ़े का सेवन पित्ताशय की पथरी को बाहर निकालने में भी सहायता करता है|
बुखार में (Apamarg for fever)
- क्या आपको भी ठण्ड पड़ते ही बुखार आने की शिकायत बनी रहती है तो ऐसे में यह आपके लिए एक उत्तम औषधि है| लहसुन, काली मरीच और चिरचिटा के पत्तों को आपस में अच्छे से मिलाकर गोली बना लें| बुखार आने से 48 घंटे पहले इस गोली का सेवन करना चहिये| इससे आपको ज्वर में लाभ मिलता है|
कब्ज़ में लाभदायक (Apamarg for constipation)
- कब्ज़ में इसके पत्तों से बनाये गए चूर्ण का सेवन करना बहुत हितकर होता है|
सिर दर्द में (Apamarg for headache)
- आधासीसी या माइग्रेन में होने वाले सिर दर्द में इस औषधि के बीजो को पीसकर रोगी को नस्य विधि से लेने चहिये| इससे बहुत जल्द दर्द में आराम मिलता है|
पेचिश और हैजा में
- पेचिश रोग में यदि लाल चिरचिटा की जड़ का काढ़ा बना कर पिया जाता है तो लाभ पहुँचता है|
- हैजा में यदि इसके पञ्चांग से बने हुए काढ़े का सेवन किया जाता है तो अत्यंत लाभ मिलता है|
नेत्र सम्बन्धी रोगों का शमन करे (Apamarg for eyes)
- दधि में सैन्धानमक मिलाकर चिरचिटा को इसमें घिस कर आंखो में काजल की तरह लगाने से सभी प्रकार के नेत्र रोगों का शमन होता है|
- इसके अतिरिक्त इसकी जड़ के चूर्ण और शहद को अच्छे से मिलकर आँखों में लगाने से भी नेत्र विकारों में लाभ मिलता है|
बहरेपन का इलाज़ करे
- अपामार्ग की जड़ से सिद्ध किये हुए तिल के तेल को कान में डालने से बहरेपन का इलाज संभव हो सकता है|
गर्भ का ठहराव कराये
- अपामार्ग की जड़ को गाय के दूध के साथ लेने से गर्भ का धारण करने में आसानी होती है| इस द्रव को दिन में तीन बार मासिक धर्म के शुरुआत होने पर लेना चाहिए|
विषैले जीवो के काट लेने पर
- किसी विषैले जीव के काट लेने पर प्रभावित स्थान पर यदि इसका रस लगाया जाता है तो इससे जहर का असर धीरे धीर कम हो जाता है| इसके बाद स्थान पर पत्तों का लेप करने से घाव में भी आराम मिलता है|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Apamarg)
- जड़
- पत्ती
- पञ्चांग
- बीज
सेवन मात्रा (Dosage of Apamarg)
- रस- 5 से 15 ml तक
- चूर्ण -2 से 5 ग्राम तक
सावधानियाँ (Precautions of Apamarg)
पेट के विकारों में इसका प्रयोग अधिक मात्रा में नही करना चाहिए|
अपामार्ग से निर्मित औषधियां
- अपामार्गक्षारतेल