वरुण: Varun, A Magical Herbs for Urinary Disease(introduction, Benefits, Usages)
वरुण का परिचय: (Introduction of Varun)
वरुण क्या है? (What is Varun?)
प्रकृति ने मनुष्य को कई ऐसे वरदान नवाजा है जिनसे मनुष्य के निरोगी रहने का सीधा संबंध होता है| आयुर्वेद में कई औषधियां होती हैं जिन्हें एक वरदान के समान माना जाता है| इन औषधियों में से ही एक औषधि वरुण भी होती है|
इस औषधि का सेवन करके आप निरोगी बने रहने का अपना सपना पूरा कर सकते हैं| इसके सेवन से कई ऐसे रोगों को दूर किया जा सकता है जिनके बारे में हम जानते तक नहीं हैं| यह औषधि मुख्य रूप से मूत्र रोग, पथरी, और लीवर के लिए उपयोग में ली जाती है| यदि आप भी इन सब समस्याओं से या अन्य इनमें से बताई गई किसी भी समस्या से ग्रस्त है तो इस औषधि का सेवन कर सकते हैं| आइए आपको भी परिचित कराते हैं वरुण औषधि के दिव्य गुणों के बारे में|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Morphology of Varun)
इसका पेड़ लगभग 10 मीटर तक ऊंचा होता है जो कांटों से रहित होता है| इसके तने की छाल भूरे रंग की होती है तथा कठोर चिकनी पीले सफेद रंग की मोटी होती है| इसके पत्ते बेल के पत्तों के समान होते हैं जो आगे से नुकीले होते हैं| इसके खुशबूदार फूल पीले सफेद रंग के गुच्छाकार मंजरियों में लगे होते हैं| इसके फल आकार में अंडाकार गोलाकार होते हैं| इसके फल गुदेदार भी होते हैं तथा चिकने या खुरदरे हो सकते हैं| कच्ची अवस्था में यह हरे तथा पक जाने के बाद कुछ लाल रंग के दिखाई पड़ते हैं| बाहर से फल थोड़ा कठोर होता है| इसके बीज काफी संख्या में होते हैं जो पीली मजा में दबे हुए होते हैं तथा रंग में कुछ भूरे दिखाई पड़ते हैं| इसके फूल और फल जनवरी से मई के बीच आते हैं|
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वरुण के सामान्य नाम (Varun common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Crataeva nurvala |
अंग्रेजी (English) | Three leaved cape |
हिंदी (Hindi) | बरुन, बरना |
संस्कृत (Sanskrit) | वरुण, सेतुवृक्ष, तिक्तशाक, कुमारक, मारुतापह, वराण, शिखिमण्डल, श्वेतद्रुम, साधुवृक्ष, गन्धवृक्ष, श्वेतपुष्प |
अन्य (Other) | बोर्यनो (उड़िया) नरवाला (कोंकणी) कागडाकेरी (गुजराती) मरलिङ्गम (तमिल) ऊषकिया (तेलुगु) |
कुल (Family) | Capparidaceae |
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वरुण के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Ayurvedic Properties of Varun)
दोष (Dosha) | कफवातशामक, पित्तवर्धक (pacifies kapha and vata, increase pitta) |
रस (Taste) | तिक्त (bitter), कषाय (Ast.) |
गुण (Qualities) | लघु (light), रुक्ष (dry) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | अश्मरीभेदन, दीपन, पाचन, अनुलोमन |
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वरुण के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Benefits and usages of Varun )
पथरी में लाभदायक वरुण का सेवन (Varun for calculus)
- अश्मरी या पथरी होने पर यदि वरुण की जड़ से निर्मित काढ़े में उस की छाल से बना हुआ पेस्ट मिलाकर सेवन किया जाता है तो इससे पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है| इसे आप लगभग 30ml तक की मात्रा में ले सकते हैं|
- बराबर मात्रा में औषधि की छाल, हरड़, आंवला, बहेड़ा, सोंठ तथा गोखरू से बने हुए काढ़े में यवक्षार और गुड़ मिलाकर पीना चाहिए| इससे पथरी का शमन किया जा सकता है|
- इसके अतिरिक्त आप वरुण की छाल से बने हुए काढ़े में गुड़ मिलाकर ले सकते हैं| इससे भी पथरी बाहर निकल सकती है|
मूत्र रोगों में लाभदायक (Varun for urinary disease)
- मूत्र त्याग करते वक्त यदि जलन, कठिनाई, दर्द का अनुभव होता हो तो ऐसे में इस औषधि से सिद्ध घी का सेवन करना चाहिए| यदि मूत्र रोग अधिक पुराना हो तो ऐसे में इसके साथ गुड़ का सेवन भी करना चाहिए|
भूख ना लगने पर वरुण (Varun for loss of appetite)
- यदि आपको भूख नहीं लग रही है तो यह आपके लीवर से संबंधित कोई विकार हो सकता है| इसके लिए आप वरुण के पाउडर में शहद मिलाकर सेवन कर सकते हैं| यह औषधि लीवर के लिए बहुत अच्छा काम करती है इसी कारण यह आपकी भूख को बढ़ाने में भी मदद करेगी|
जोड़ों से जुड़ी हुई तकलीफों को दूर करने में (Varun for joints problem)
- आमवात की समस्या होने पर इस औषधि के ताजे पत्तों के रस में नारियल दूध तथा मक्खन मिलाकर सेवन करना चाहिए| इससे आमवात की समस्या में जल्दी ही लाभ मिलता है|
- इसके अलावा यदि आपके जोड़ों में दर्द होता हो तो इसके पत्तों को पीसकर जोड़ों पर लेप करना चाहिए| इससे जोड़ों के दर्द में लाभ लिया जा सकता है
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प्रसव के बाद होने वाले दर्द में वरुण (Varun for post pregnancy)
- यदि प्रसव के बाद महिला को बहुत अधिक दर्द हो रहा हो तो ऐसे में इस औषधि की छाल के रस का प्रयोग करना चाहिए| इससे दर्द में आराम मिलता है|
त्वचा रोगों का समापन करें (Varun for skin disease)
- दाद होने पर बराबर मात्रा में वर्षा भू की जड़ और वरुण की जड़ से बने हुए काढ़े का सेवन करना चाहिए|
- विसर्प में यदि इस औषधि को पीसकर लेप किया जाता है तो इससे विसर्प की समस्या में आराम मिलता है|
- यदि आपके चेहरे या त्वचा पर काले दाग धब्बे हो गए हैं तथा जाने का नाम नहीं ले रहे हैं तो ऐसे में इस औषधि की छाल को बकरी के दूध में घिसकर लेप करना चाहिए| इससे काले दाग धब्बों का शमन होता है तथा चेहरे की झाइयां भी मिटती है और साथ ही रंग भी निखरता है|
गंडमाला में लाभदायक
- वरुण की जड़ से बने हुए काढ़े में यदि शहद मिलाकर सेवन किया जाता है तो गंडमाला में लाभ मिलता है| इसके अलावा आप इसकी छाल से बने हुए लेप को भी लगा सकते हैं|
अर्श या बवासीर में (Varun for piles)
- मूली, हरड़, आमला, बहेड़ा, आक, वंश, वरुण, अरणी, सहजन आदि के पत्तों का काढ़ा बनाकर यदि बवासीर के मस्सों को धोया जाता है तो इससे दर्द का शमन होता है|
गुल्म रोग में
- वरुणादि क्वाथ का सेवन करने से गुल्म रोग के साथ-साथ सिर दर्द में भी लाभ ले सकते हैं|
पैरों में होने वाली जलन में वरुण
- इस औषधि के पत्तों को पीसकर यदि तलवों पर लेप किया जाता है तो इससे पैरों की जलन शांत होती तथा सूजन का भी शमन किया जा सकता है|
कब्ज में लाभ दायक (Varun for constipation)
- वरुण में मृदु विरचक के गुण पाए जाते हैं जिसके कारण यह छोटे-मोटे कब्ज़ का समाधान कर सकता है| इसके लिए आप इसके काढ़े की 25 से 30 ml तक की मात्रा का सेवन कर सकते है|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Varun)
- जड़
- पत्ते
- छाल
- फूल
- गोंद
सेवन मात्रा (Dosage of Varun)
- क्वाथ – 25-30 ml
- रस – 5-10ml