चन्द्रामृत रस (Chandramrit ras)
चन्द्रामृत रस का परिचय (Introduction of Chandramrit ras)
चन्द्रामृत रस क्या होता है? (Chandramrit ras kya hai?)
यह एक आयुर्वेदिक औषधि है| यह कफ और वात को संतुलित बनाये रखने में मदद करती है| चन्द्रामृत रस पांच प्रकार की खांसी के लिए लाभदायक है | जिस खांसी में खून आता है, तथा खांसते –खांसते दाह, प्यास मूर्च्छा आ जाती है| उस हालत में इस औषधि का अच्छा असर होता है|
यदि जीर्ण ज्वर के साथ खांसी और मन्दाग्नि हो तो इसे दूर करने में इसका प्रयोग किया जाता है| इस रस के कारण कफ नर्म होकर आसानी से निकल जाती है और रक्त आना भी बंद हो जाता है| और दाह व प्यास की शान्ति हो कर रोगी को आराम हो जाता है | यह सभी प्रकार के कास तथा श्वास रोग में यह उत्तम लाभदायक होती है|
चन्द्रामृत रस के घटक (Chandramrit ras ke gatak)
- शुद्ध पारा
- शुद्ध गन्धक
- लौह भस्म
- अभ्रक भस्म
- सुहागे की छाल
- सोंठ
- पीपल
- काली मिर्च
- आंवला
- हर्रे
- बहेडा
- चव्य
- धनिया
- जीरा
- सेंधा नमक
चन्द्रामृत रस बनाने की विधि (Chandramrit ras banane ki vidhi)
इन सब तत्वों को कूटकर प्रथम में पारा – गंधक की कज्जली बना ले फिर उसमे भस्म मिला कर इन सभी का चूर्ण बना कर गोलिया बनाकर धूप में सुखा दे |
चन्द्रामृत रस के फायदे (Chandramrit ras ke fayde or upyog)
कफ से जुडी समस्याओं में (Chandramrit ras for cough)
कफ, भारी, ठंडा, चिकना, मीठा स्थिर और चिपचिपा होता है| यही कफ के स्वभाविक गुण होते है| कफ मृत कोशिकाओ से बनता है और फेफड़ो व श्वसन तन्त्र द्वारा बनाया जाता है| कोई व्यक्ति पहले से किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त है जैसे पीलिया, मलेरिया, टाइफाइड आदि तो इन बीमारियों के कारण कफ अधिक बनता है| यदि व्यक्ति को कफ आधिक जम रहा हो तो उसे कोई अन्य बीमारी भी हो सकती है|
कफ मुख्य रूप से पेट और छाती में पाया जाता है| इसके अलावा गले के उपरी भाग, कण्ठ, सिर में पाया जाता है | कफ धुम्रपान की वजह से भी उत्पन्न होता है| कफ के कारण साँस लेने में भी तकलीफ होती है | इस दोष से छुटकारा पाने के लिए चन्द्रामृत रस का उपयोग किया जाता है|
वात सम्बन्धी समस्या में
वात शरीर में सबसे महत्चपूर्ण माना जाता है| इसके अनुसार जो तत्व शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करता है| वह वात या वायु कहलाते है| शरीर में होने वाली सभी गतिविधिया वात के कारण होती है| जैसे शरीर से पसीना निकलना, रक्त संचार और मल मूत्र का निकलना यह सभी प्रतिक्रिया वात के कारण होती है| वात का मुख्य स्थान पेट में होता है|
वात असंतुलित होने से रक्तप्रवाह और मल मूत्र का ठीक से प्रवाह नही हो पाता है| वात दोष से होने वाले लक्षण शरीर का दुबलापन, आवाज में भारीपन, शरीर का रूखापन, और नींद की कमी इसके अलावा आँखों, भौहो, होठो, हाथो, टांगो, में अस्थिरता आदि लक्षण दिखाई पड़ते है और जल्दी क्रोधित होना, चिढ जाना, नींद में डर जाना और बातो को समझकर भूल जाना | इन सभी समस्याओ को दूर करने के लिए इस चन्द्रामृत रस का प्रयोग किया जाता है|
जीर्ण ज्वर में (Chandramrit ras for chronic fever)
हर व्यक्ति का सामान्य तापक्रम होता है| जब शरीर में ताप बढ़ जाता है तो ज्वर या बुखार हो जाता है| साधारण ज्वर चिकित्सा के अभाव के कारण बना रहता है तब जीर्ण ज्वर में बदल जाता है| जब रोगी को 14 या 15 दिन तक ज्वर बना रहता है तब जीर्ण ज्वर कहलाता है|
यह बुखार धीमा कभी तेज हो जाता है और लम्बे समय तक रहता है तब उसे जीर्ण ज्वर के नाम से जाना जाता है| इस ज्वर में हल्का बुखार, सिर दर्द अरुचि, शरीर में दुर्बलता, आँखों में पीलापन, शरीर में पीलापन, खून की कमी, कब्ज, पतले दस्त, आदि जीर्ण ज्वर में होनी वाले लक्षण है| इस पुराने बुखार से छुटकारा पाने के लिए इस रस का उपयोग किया जाता है|
रक्तपित में (Chandramrit ras for blood bile)
रक्त पित एक प्रकार रोग होता है जिसमे मुंह, नाक, कान, योनि आदि इंद्रियों से खून निकलता है | यह रोग धूप में अधिक घूमने, गर्म पदार्थ का अधिक सेवन करने, गलत खान पान आदि के कारण होता है| इसमें कुपित हुआ रक्त और पित्त बाहर आने लगता है | सामान्य रूप से यह रोग उचित खान पान से ठीक नही हो पाता है| इसलिये इस चन्द्रामृत रस का प्रयोग किया जाता है|
आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार रक्तपित के प्रकार
वातज रक्तपित
यदि रक्तपित में वायु की अधिकता होती है तो खून काला या लाल ज्यादा निकलता है| इस रक्तपित में रक्त योनि या लिंग से निकलता है|
कफज रक्तपित
यदि रक्तपित में कफ की अधिकता होती है तो निकलने वाला खून चिपचिपा या गाढ़ा होता है | इसमे रक्त नाक मुंह से निकलता है
पितज रक्तपित
यदि रक्तपित की अधिकता हो तो तब रक्त काढ़े की तरह काला या नीला होता है | इन सभी लक्षणों को दूर करने के लिए इस रस प्रयोग किया जाता है|
अतिसार में (Chandramrit ras for diarrhea)
अतिसार या दस्त रोग आमतौर पर वायरस या कभी कभी दूषित भोजन करने से होती है अतिसार के कारण से बहुत ही कम मामलो में आंत्र सूजन रोग हो सकते है| दस्त किसी बीमारी के अलावा भी हो सकते है जैसे कुछ उल्टा सीधा खा लेने से, तरल आहार, भोजन के ठीक तरह से ने पचना, तनाव चिंता, आदि|
इस रोग से बच्चे व बुजुर्ग अधिक प्रभावित होते है क्योकि इनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है | इस अतिसार से मरने वाले बच्चे अधिक होते है इसलिए समय रहते ही इसका इलाज करना अति आवश्यक है| अतिसार को दूर करने के लिए चन्द्रामृत रस का उपयोग किया जाता है|
अतिसार के लक्षण
- उल्टी
- पेट के निचले हिस्से में दर्द
- शौचबार बार जानी की इच्छा
- पेट में ऐठन के साथ बेचनी होना
- शौच के वक्त मल के साथ खून या पस अथवा दोनों का आना
- भूख में कमी
सन्निपात में
सन्निपात ऐसा रोग होता है जिसके कारण वात, पित्त और कफ तीनो ही बिगड़ जाते है जिससे व्यक्ति चिडचिढा हो जाता है और पागलपन जैसे व्यवहार करने लगता है | इस रोग में बार बार बुखार आता है और बुखार में व्यक्ति का ताप चढ़ने और उतरने लगता है| ये बुखार अचानक ही आने वाला बुखार है| जिसके कारण सिर भारी व सिर दर्द होने लगता है| ऐसी अवस्था में इस रस का प्रयोग किया जाता है|
चन्द्रामृत रस के अन्य फायदे (Other benefits of Chandramrit ras)
- स्तन्य दोष को दूर करता है |
- जी मचलना
- रक्त प्रवाह में भी सहायक है
चन्द्रामृत रस की सावधानियाँ (Chandramrit ras ke sevan ki savdhaniya)
- गर्भवती महिलाओं को इस औषधि के सेवन से बचना चाहिए |
- यदि आप पहले से भी कोई दवाई ले रहे है, तो अपने चिकित्सक को जानकारी अवश्य देवे |
चन्द्रामृत रस की सेवन विधि (Chandramrit ras ki sevan vidhi)
- एक गोली शहद में मिलाकर देवे और ऊपर से बकरी का दूध या शर्बत पिलावे|
- यदि खांसी में कफ के साथ रक्त आता हो तो एक गोली इस रस को पाच गोली नागकेशर का चूर्ण और पाच गोली खून खराबे के चूर्ण के साथ मिलाकर एक गोली लाल कमल के स्वरस के साथ देवे| खांसी के साथ श्वास भी हो तो लाल- कमल-स्वर के साथ देवे|
- एक गोली चन्द्रामृत रस के साथ पाच –सात गोली सोमलता का चूर्ण मिला कर शहद से देवे|
- सूखी कास में मिश्रीचूर्ण के साथ मिला कर देने से जल्दी लाभ मिलेगा |
- शुद्ध टंकण अथवा वासा, कंटकारी, अपामार्ग, इनमे से किसी साथ भी लाभकरी है|
चन्द्रामृत रस की उपलब्धता (Chandramrit ras ki uplabdhta)
- बेधनाथ
- डाबर
- कृष्ण गोपाल कालेडा
- बेसिक आयुर्वेदा