त्रिभुवनकीर्ति रस: फायदे (Tribhuvankirti ras: Benefits)
त्रिभुवनकीर्ति रस (Introduction of Tribhuvankirti ras )
त्रिभुवनकीर्ति रस क्या हैं? (Tribhuvankirti ras kya hai?)
यह एक आयुर्वेदिक औषधि हैं जिसके कई फायदे होते हैं | मुख्य रूप से इस औषधि का प्रयोग कफ और वात के कुपित होने पर आने वाले बुखार में किया जाता हैं | वैसे तो वात से जुड़े कई विकारो कई विकारो में इसका उपयोग किया जाता हैं लेकिन बुखार में इसका सबसे ज्यादा इसका उपयोग होता हैं |
इसका सेवन करने से शरीर में पसीने की मात्रा बढती हैं जिससे शरीर का विष मूत्र के माध्यम से बाहर आ जाता हैं| कफ के कारण गले में हो रही गाँठ की सूजन, श्वासनली का ताप अधिक होने पर त्रिभुवनकीर्ति रस का सेवन उचित होता हैं| निमोनिया और रोमांतिका जैसे रोग में भी इसका प्रयोग किया जाता हैं|
त्रिभुवनकीर्ति रस के घटक (Tribhuvankirti ras ke ghatak)
- शुद्ध हिंगुल
- शुद्ध बच्नाभ
- सौंठ
- पीपल
- काली मिर्च
- सुहागे का फूला
- पीपलामूल
- तुलसी का रस
- अदरक का रस
- धतूरे का रस
त्रिभुवनकीर्ति रस बनाने की विधि (Tribhuvankirti ras banane ki vidhi)
इस गुणकारी औषधि को बनाने के लिए दि गयी सारी औषधियों को अच्छे से छान कर इनका चूर्ण बना लें | अब तुलसी, अदरक और धतूरे की तीन तीन भावना दे कर गोलियां बना लें | अब इन्हें सुखा कर इनका उपयोग किया जा सकता हैं |
त्रिभुवनकीर्ति रस के फायदे (Tribhuvankirti ras ke fayde)
ज्वर में (in fever)
यह औषधि मुख्य रूप से कफ के कुपित होने से आने वाले बुखार में फायदा करती हैं| विषम ज्वर, ठण्ड लगकर आने वाली बुखार, पुरानी बुखार आदि कफजनित ज्वरो में इसका उपयोग किया जा सकता हैं | इसका सेवन करने से शरीर में पसीने और मूत्र की मात्रा बढती हैं जिससे बुखार में अच्छा परिणाम मिलता हैं |
ज्वर का वेग मंद होने पर चलने की इच्छा ना होना, आलस, आफरा, पेट का जकड जाना, अधिक नींद, पुरे शरीर में धीमा दर्द, नाक और मुंह से कफ स्त्राव, जुखाम, पसीना ना आना जैसे लक्षण होने पर भी इस औषधि का उपयोग उत्तम होता हैं |
त्रिभुवनकीर्ति रस के साथ ज्वर में यदि इन औषधियों का प्रयोग किया जाये तो जल्द और अच्छे परिणाम मिलते हैं | जैसे-
मुख्य औषधि | सहायक औषधियां |
त्रिभुवनकीर्ति रस | महासुदर्शन काढ़ा, महासुदर्शन चूर्ण, पंचकोल चूर्ण |
नवीन ज्वर में
इस ज्वर में नाड़ी की गति अनियमित हो जाती हैं | सिर में दर्द बना रहता हैं, शरीर कांपता हो, सर्दी के मौसम में ज्यादा छींक आना, पीठ और छाती में दर्द होना, गर्म चीज़ खाने की इच्छा, सूखी खांसी होना जैसे कई लक्षण होते हैं | आयुर्वेद में ज्वर के भी कई प्रकार होते हैं | त्रिभूवनकीर्ति रस का प्रयोग इस ज्वर में करने पर रोगी को राहत मिलती हैं |
सन्निपात में
आयुर्वेद के अनुसार जब व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ तीनो का संतुलन बिगड़ जाता हैं तो इसे सन्निपात कहा जाता हैं | सन्निपात कई तरह के होते हैं | यह रोग होने पर रोगी को होश नही रहता, रोगी बडबडाता रहता हैं | इस रोग में त्रिभूवनकीर्ति रस का उपयोग करने से इसमें लाभ मिलता हैं |
रोमांतिका में
इस रोग को चेचक या छोटी माता भी कहा जाता हैं | इस रोग में शरीर पर सारी फुन्सिया एक बार में नही निकलती हैं इसलिए काफी पीड़ा होती हैं | इस रोग में रोगी की आँखों से पानी निकलना, सर्दी, जुखाम, बुखार, मुंह पर लाल दानो का होना, बैचेनी जैसे लक्षण सामने आते हैं | इस रोग में त्रिभूवनकिर्ती रस का सेवन करना चाहिए | यह शरीर से सारे विषाक्त पदार्थो को शरीर से बाहर निकाल रोगी को आराम पहुंचाती हैं |
गले की समस्या (for throat problems)
कफ की मात्रा शरीर में बढ़ने के कारण जब यह गले में सूजन का कारण या खराश का कारण बनता है तो इस स्थिति में त्रिभुवनकीर्ति रस का सेवन बहुत फायदेमंद होता हैं | कफ के कारण श्वास नली के जाम होने पर भी इसका उपयोग किया जाता हैं |
निमोनिया में
यह रोग फेफड़ों में सूजन और जलन पैदा करता हैं जिसके कारण साइन में दर्द, सांस लेने में तकलीफ आने लगती हैं | इसकी स्थिति गंभीर होने पर व्यक्ति की जान को भी खतरा बना रहता हैं | इस समस्या में यदि इस औषधि का उपयोग किया जाये तो यह कफ को खत्म कर इस समस्या से निकलने में सहायता करती हैं |
त्रीत्भुवनकीर्ति रस के साथ निमोनिया में यदि इन औषधियों का प्रयोग किया जाये तो जल्द और अच्छे परिणाम मिलते हैं | जैसे-
मुख्य औषधि | सहायक औषधियां |
त्रिभुवनकीर्ति रस | कनकासव, द्राक्षासव, सितोपलादि चूर्ण, वासवालेह, वासकासव, कासचिंतामणी |
इन्फ्लुएंजा में
शरीर में थोडा थोडा दर्द रहना, जोड़ो में दर्द, कफ सूखकर सूखी खांसी होना, गले में दर्द, खांसी की वजह से फेफड़ो के आस पास सूजन होना इसके लक्षण हैं | इस समस्या से निकलने के लिए यह इ उत्तम औषधि मानी जाती हैं |
अन्य रोगों में (Tribhuvankirti ras for other disease)
- दर्द में
- शारीरिक सूजन में
- टॉन्सिल की सूजन में
- मोटापा कम करें
- दाढ़ की सूजन में
- मूत्र विकार में
त्रिभुवनकीर्ति रस की सेवन विधि (Tribhuvankirti ras ki sevan vidhi)
- 1 से 2 गोली का सेवन अदरक के रस, शहद, या तुलसी और बिल्वपत्र के क्वाथ के साथ रोग की अनुसार करें |
त्रिभुवनकीर्ति रस का सेवन करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ (Tribhuvankirti ras ke sevan ki savdhaniya)
- गर्भवती महिला को इसके सेवन से परहेज करना चाहिए|
- किसी भी व्यक्ति को इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरुर लेनी चाहिए|
- यदि आप पहले ही किसी रोग से ग्रसित हैं तो इसकी जानकारी अपने चिकित्सक को दे कर ही इसका सेवन शुरू करें|
- पित्त प्रधान वाले व्यक्ति इस औषधि का सेवन ना करें और यदि किसी परिस्थिति के कारण इसका सेवन करना भी पड़े तो इसे पित्तशामक औषधि के साथ लें |
- बच्चो की पहुँच से इसे दूर रखे|
त्रिभुवनकीर्ति रस की उपलब्धता (Tribhuvankirti ras ki uplabdhta)
- बैधनाथ त्रिभुवनकीर्ति रस (BaidyanathTribhuvankirti ras )
- दिव्य त्रिभुवनकीर्ति रस (Divya Tribhuvankirti ras)
- बेसिक आयुर्वेदा त्रिभुवनकीर्ति रस (Basic ayurveda Tribhuvankirti ras)
- डाबर त्रिभुवनकीर्ति रस (Dabur Tribhuvankirti ras)
- ऊंझा त्रिभुवनकीर्ति रस (Unjha Tribhuvankirti ras )
- गुआफा त्रिभुवनकीर्ति रस (Guapha Tribhuvankirti ras)
- झंडू त्रिभुवनकीर्ति रस (Zandu Tribhuvankirti ras)
- डी.ए.वी. त्रिभुवनकीर्ति रस (DAV Tribhuvankirti ras)
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