बहेडा (Baheda)
बहेडा का परिचय: (Introduction of Baheda)
बहेडा क्या है? (What is Baheda?)
आयुर्वेद में ऐसी बहुत सारी औषधिया है जिनका सदियों से अनेक बीमारी के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता आ रहा है| इनमे से बहेडा भी एक जड़ी बूटी है जो कब्ज और दस्त से लेकर बुखार, अपच तक विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों के उपचार और प्रंबधन के लिए प्रयोग किया जाता है| यह बालो के लिए भी बहुत लाभकारी है| इसके तैल का उपयोग बालो की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है|
क्या आपको पता है की इसका उपयोग पाचन संबंधित बिमारियों को दूर करने के लिए भी किया जाता और शायद आपको भी यह भी पता हो की इस जड़ी – बूटी के त्रिफला के तीन प्रमुख अवयवो से एक बहेडा है| जबकि अन्य दो में से आंवला और हरड शामिल है| यह वात- पित और कफ को संतुलित करने में सहायक है| यह पेट दर्द, ब्लड शुगर और कब्ज के स्तर को सही बनाये रखता है|
वैसे तो यह त्रिदोषहर हैं परन्तु यह मुख्य रूप से कफ का शमन करता है| यही नही इसका प्रयोग हृदय रोगों में फायदेमंद होता है| बहेड़ा कीड़ों को मारने वाली औषधि है| बहेड़े के फल की मींगी मोतियाबिन्द को दूर करती है| इसकी छाल खून की कमी, पीलिया और सफेद कुष्ठ में लाभदायक है| इसके बीज कड़वे, नशा लाने वाले, अत्यधिक प्यास, उल्टी, तथा दमा रोग का नाश करने वाले हैं| इसके फायदे यही ख़त्म नही होते है आइये जानते है की और इसके फायदे कितने है और किन – किन बीमारियों में प्रयोग में लिया जाता है|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Baheda ki akriti)
वसंत ऋतु में बहेड़ा के पेड़ से पत्ते झड़ जाने के बाद इस पर ताम्बे के रंग के नई टहनी या शाखा निकलते हैं| गर्मी के मौसम के आगमन तक इसी टहनी या शाका के साथ फूल खिलते हैं| वसंत के पहले तक इसके फल पक जाते हैं| बहेड़ा के फलों का छिलका कफनाशक होता है| यह कंठ और सांस की नली से जुड़ी बीमारी पर बहुत असर करती है| इसके बीजों की गिरी दर्द और सूजन ख़त्म करती है|
यह मध्य आकार का होता है| 25 से 45 मीटर ऊँचा पेड़ होता है| इसका तना सीधा और शाखाओ वाला होता है| इसकी छाल भूरे व धूसर रंग की तथा दरारों से युक्त होती है| इसके पत्ते सरल, चौड़े शाखाओ के अन्त में लगे हुए, महुए के पत्तो के जैसे होते है| पत्तो की दोनों सतह पर मध्य शिरा से स्पष्ट होती है| इसके फुल पीले रंग के होते है| इसके फल धूसर रंग के अंडाकार व गोलाकार होते है| फल के अंदर एक बीज होता है| इसके पेड़ से बबूल की गोंद के समान एक प्रकार का गोंद निकलता है| इसका फुलकाल मार्च से मईतक तथा फलकाल जनवरी से अप्रैल तक होता है|
बहेडा के सामान्य नाम (Baheda common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Terminalia bellirica |
अंग्रेजी (English) | Belleric myrobalan |
हिंदी (Hindi) | हल्ला, बहेड़ा, फिनास, भैरा, बहेरा; |
संस्कृत (Sanskrit) | बिभीतक, कर्षफल, अक्ष, कलिद्रुम |
अन्य (Other) | बहेरा (उर्दू) बौरी (असमिया) गोटिन्ग (कोकणी) तोड़े (कन्नड़) बेहेड़ा (गुजराती) तनितांडी (तमिल) धीन्डी (तेलगु) साग (बंगाली) बर्रो (नेपाली) बेहड़ा (मराठी) बहिरा (पंजाबी) बहेड़ा (मणिपुर) थाअन्नी (मलयालम) |
कुल (Family) | Combertaceae |
बहेडा के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Baheda ke Ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | त्रिदोषहर (pacifies tridosha) |
रस (Taste) | कषाय (astringent) |
गुण (Qualities) | रुक्ष (dry), लघु (light) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | शोथहर, वेदनास्थापन, रक्तस्तम्भन, दीपन |
बहेडा के औषधीय फायदे एवं उपयोग ( Baheda ke fayde or upyog)
खांसी के लिए (Baheda for cough)
- बहेड़ा के चूर्ण में शहद मिला लें| इसे सुबह और शाम भोजन के बाद चाटने से सूखी खाँसी तथा पुराने दमा रोग में बहुत लाभ होता है| यदि आप भी खांसी से बहुत ही परेशान है तो इसका उपयोग कर खांसी से छुटकारा पा सकते है|
- बहेड़ा के एक फल को घी में डुबाकर, घास से लपेटें| इसे गाय के गोबर में बंद करके आग में पका लें। इसे बीजरहित कर मुंह में रख कर चूसें| इससे खांसी, जुकाम, दमा तथा गला बैठने जैसे रोगों का नाश होता है|
सांस की समस्या में (Baheda for breathing problems)
- बहेडा और हरड की छाल को मिलाकर चूर्ण बना ले| फिर इस चूर्ण को सेवन करने से सांस संबंधित समस्या से छुटकारा मिलता है यदि आपको सांस की समस्या है तो आप भी इसका प्रयोग कर सकते है|
ह्रदय के रोगो में (Baheda for heart)
- बहेड़ा के फल के चूर्ण तथा अश्वगंधा चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें| इसमें गुड़ मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है|
अतिसार में (Baheda for diarrhea)
- भुने हुए बहेडा का सेवन करने से बहुत दिनों से लगी हुई दस्त का भी शमन होता है| यह आपको इस दस्त की समस्या है तो इस औषधि का प्रयोग कर सकते है|
बुखार में बहेडा (Baheda for fever)
- यदि आपको बार बार सर्दी या अन्य किसी कारणों की वजह से बुखार आता है तो बहेड़ा और जवासे के 30 से 50 मिली काढ़े में एक चम्मच घी मिला लें| इसे दिन में तीन बार पीने से पित्त और कफ विकार से हुए बुखार में लाभ होता है|
- इस औषधि के मज्जा को पीसकर पूरे शरीर पर लेप करने से पित्तज बुखार में होने वाली जलन का शमन होता है| यदि आपको भी यह वाला बुखार है तो इसका प्रयोग कर सकते है|
सूजन में बहेडा (Baheda for swelling)
- बहेड़ा के बीजों को पीस कर लेप करने से सभी प्रकार की सूजन, जलन और दर्द का शमन होता है| यदि आपको भी किसी भी प्रकार के सूजन की समस्या है तो बहेडा का प्रयोग करके सूजन से जल्दी से छुटकारा पा सकते है|
कीडनी की पथरी में (Baheda for kidney calculus)
- यदि आपके कीडनी में पथरी है तो आप बहेडा का प्रयोग कर सकते है इसके लिए आपको बहेडा के फल का मज्जा को मधु में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से कीडनी की पथरी मूत्रमार्ग से बहार निकल जाएगी है|
सफेद बालो में बहेडा (Baheda for hair)
- बहेड़ा फल की मींगी का तेल बालों के लिए अत्यन्त पौष्टिक है| इससे बाल सफेद भी नहीं होते है और बाल रुसी होने से भी बचते है|
मूत्र रोग में (Baheda for urinary disease)
- बहेड़ा फल के मज्जा के चूर्ण में मधु मिला लें| पेशाब में जलन, दर्द या कोई अन्य समस्या है तो इसका प्रयोग आपके लिए बहुत ही लाभदायक साबित होगा|
पित्तज प्रमेह में
- यदि आपको पित्तज प्रमेह है तो बहेडा, रोहणी, कुटज, कैथ, सप्तपर्ण तथा कबील के फूलो का चूर्ण बना ले फिर इसे शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्तज प्रमेह में लाभ मिलता है|
लार के बहने पर बहेडा का फायदा
- बहेड़ा में समान मात्रा में शक्कर मिला लें| इसे कुछ दिन तक खाने से अधिक लार बहने की परेशानी ठीक होती है|यदि आप भी इस समस्या से झुझ रहे है तो इसका उपयोग कर सकते है|
खुजली में बहेडा (Baheda for itching)
- बहेडा के फल की मींगी का तैल खुजली का लिए बहुत ही लाभदयक है| यदि आपको भी खुजली की समस्या है तो इसके तैल की मालिश करने से खुजली व जलन से छुटकारा मिलता है|
नपुंसकता में
- हर कोई व्यक्ति आजकल इस परेशानी से बहुत ही परेशान रहते है| यदि आप भी इससे पीड़ित है तो बहेडा के चूर्ण में गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह – शाम को सेवन करने से नपुंसकता से छुटकारा मिलता है और आपकी काम शक्ति में भी लाभ होता है|
आँखों के दर्द में (Baheda for eyes)
- बहेडे की मींगी के चूर्ण को मधु के साथ मिलाकर काजल की तरह लगाने से आँख के दर्द तथा सूजन आदि में लाभ होता है|
- तिल का तेल, बहेड़ा का तैल, भांगरा का रस तथा विजयसार का काढ़ा लें| इनको लोहे के बर्तन में तेल में पकाएं| इसका रोज प्रयोग करने से आंखों की रोशनी तेज होती है|
बहेडा के उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Baheda)
- छाल
- फल
- सूखे फल के बीज
- मज्जा
बहेडा की सेवन मात्रा (Dosages of Baheda)
- इन सब की मात्रा 3 से 6 ग्राम या चिकित्सक के अनुसार लें
सावधानी (Precautions)
यदि आप इसका अधिक मात्रा में सेवन करते है तो आपको उल्टी की समस्या हो सकती है|
बहेडा से निर्मित औषधियां
- बिभीतक तेल
- त्रिफला चूर्ण
- फलत्रिकादि क्वाथ
- तालीशादि चूर्ण
- लावंगादी वटी