विधारा (Vidhara)
विधारा का परिचय: (Introduction of Vidhara)
विधारा क्या है? (What is Vidhara)
क्या आपको पता है विधारा आपकी कमजोरी को दूर करने के प्रयोग में आता है| यदि आप किसी भी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या यौन कमजोरी से परेशान हों तो आपको विधारा के इस्तेमाल के बारे में जान लेना चाहिए| आप विधारा के गुणों और प्रयोगों को जानते होंगे तो यह पक्का है कि आपको कभी किसी हकीम लुकमान या चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी|
क्या आप जानते है की विधारा शारीरिक दुर्बलता और यौन कमजोरी की रामबाण औषधि है| इसे अश्वगंधा के साथ मिला कर अश्वगंधादि चूर्ण नामक आयुर्वेदिक औषधि बनाई जाती है जो सभी प्रकार की कमजोरियों को दूर करने की एक प्रभावी दवा है| इसके अलावा अन्य कई रोगों में विधारा का प्रयोग किया जाता है|
इसका इस्तेमाल सूजन, खांसी, मधुमेह, पेट के कीड़ो में, हाथी पाँव, एनीमिया, मिरगी, दर्द और दस्त में किया जाता है| विधारा की जड़ पेशाब के रोगों तथा त्वचा संबंधी रोगों और बुखार दूर करने में उपयोगी होती है| यह सूजन दूर करने के साथ-साथ घाव को भरता है|
यह अपने गुणों के कारण उपदंश, बवासीर, प्रमेह, कुष्ठ रोग, मूत्र रोग, गठिया आदि को नाश करता है| आइये इसके अन्य फायदों के बारे में जानते है की यह और किन किन बीमारी में फायदेमंद है|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Vidhara ki akriti)
यह नदियों के किनारे तथा वनों में पाया जाने वाली लता है| विधारा के वृद्धदारक और जीर्णदारू नाम से दो भेद हैं| वृद्धावस्था का नाशक होने से वृद्धदारक कहलाता है| इसकी लता लंबे समय तक चिरस्थायी रहने से इसे वृद्ध कहा गया है| इसकी लता की आकृति बकरी की आंत जैसी टेढ़ी- मेढ़ी होने से इसे अजांत्री या छागलांत्रिका कहते हैं| विधारा की लता खूब लम्बी होती है| इसलिए यह दीर्घवल्लरी भी कहलाती है| विधारा की दो प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है|
विधारा (Argyreia nervosa (Burm.f) Boj. –
इसकी अत्यन्त विस्तार से जमीन पर फैलने वाली, बड़े बड़े वृक्षों पर चढ़ने वाली शाखा प्रशाखायुक्त लता होती है| इसके फूल गुलाबी बैंगनी रंग के लम्बे, बाहर से सफेद रोमश वाले तथा अन्दर से गुलाबी व जामुनी रंग के होते हैं| इसके फल गोलाकार, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर भूरे, पीले रंग के होते है| इसका फूलकाल व फलकाल जुलाई से फरवरी तक होता है|
वन्य विधारा (Argyreia imbricate (Roth.)& Patel)
इसकी लम्बी, झाड़ीदार और ऊपर चढ़ने वाली लता होती है| इसके पत्ते अण्डाकार, हृदयाकार होते हैं| इसके फूल गुलाबी रंग के तथा फल लाल रंग के होते है| कई जगहों पर विधारा के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है|
विधारा की प्रजातियाँ (vidhara ki prajatiya)
1. Argyreia nervosa
2 Argyreia imbricate
विधारा के सामान्य नाम (Vidhara common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Argyreia nervosa |
अंग्रेजी (English) | Elephant creeper |
हिंदी (Hindi) | समन्दर-का-पाटा, समुद्रशोष, घावपत्ता, विधारा |
संस्कृत (Sanskrit) | वृद्धदारुक, आवेगी, छागात्री, वृष्यगन्धिका, वृद्धदारु, ऋक्षगन्धा, अजांत्री, दीर्घवल्लरी |
अन्य (Other) | समंदरसोथ (उर्दू) मोन्डा(उड़िया) चन्द्रपाडा (कन्नड़) वरघरो (गुजराती) समुत्रपच्चै (तमिल) चरदपाडा (तेलगु) बीचतरक (बंगाली) समुद्रफल (नेपाली) समुद्रसोक (मराठी) समुद्रपला (मलयालम) |
कुल (Family) | Convolvulaceae |
विधारा के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Vidhara ke Ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | कफवातशामक (pacifies cough and vata) |
रस (Taste) | कटु (pungent), तिक्त (bitter), कषाय (ast.) |
गुण (Qualities) | लघु (light), स्निग्ध (oily) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | मधुर (sweet) |
अन्य (Others) | व्रणपाचन, दारण, शोधन, रोपण, दीपन, पाचन |
विधारा के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Vidhara ke fayde or upyog)
बंद गांठ को दूर करे
- यदि आपके शरीर पर कही गांठ हो गई है तो उसका नाश करने के लिए वृद्धदारुक का प्रयोग बहुत ही लाभकारी होता है| इसके लिए इसके पत्तो को पीसकर गुनगुना करके लेप करने से बंद गांठ में लाभ होता है|
मोटापे में (Vidhara for obesity)
- अगर मोटापे के कारण आपके शरीर पर मेद हो गई है तो इससे राहत पाने के लिए वृद्धदारुक के पत्तो के रस में करंज के बीज के तैल में मिलाकर प्रयोग करने से मेद रोग में लाभ होता है|
सिर दर्द से राहत पाने के लिए (Vidhara for headache)
- वृद्धदारुक के जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर माथे पर यानी ललाट पर लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है|
पेट दर्द से राहत पाने के लिए (Vidhara for stomach ache)
- कई बार पेट दर्द का कारण अपच, कब्ज और गैस के कारण ही होता है| वृद्धदारुक भोजन को भी पचाता है, कब्ज को भी दूर करता है| विधारा वात यानी गैस को भी नष्ट करता है| पेट दर्द को ठीक करना हो तो वृद्धदारुक के पत्तों के रस में शहद मिलाकर सेवन करें| इससे आपको जरुर ही लाभ होता है|
मधुमेह में (Vidhara for diabetes)
- मधुमेह यानी डायबीटिज आज एक महामारी की तरह फैल चुकी है| वृद्धदारुक डायबीटिज में तो लाभ पहुँचाता ही है, साथ ही यह धातुओं को पुष्ट करके मधुमेह होने से भी रोकता है| वृद्धदारुक का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है, और शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी| इसके लिए एक से दो ग्राम वृद्धदारुक चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करे| इससे पूयमेह यानी गोनोरिया में भी लाभ होता है|
चेचक से राहत पाने के लिए
- आजकल के प्रदुषण के कारण चेचक की समस्या हो जाती है| यदि आपको भी चेचक की समस्या है,और आपको दर्द हो रहा है तो वृद्धदारुक के पत्तो को पीसकर लेप करने से चेचक में लाभ होता है|
कुष्ठ रोग की समस्या में (Vidhara for leprosy)
- कुष्ठ रोग यानि चर्म रोग की समस्या है तो मिश्री, वृद्धदारुक की जड़, हल्दी, मरिच का चूर्ण इन सबको मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से तथा हाथ पैरो पर लगाने से कुष्ठ रोग में जल्दी से लाभ हो जाता है|
बवासीर में (Vidhara for piles)
- वृद्धदारुक, भल्लातक तथा सोंठ, तीनों द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें| इस चूर्ण का सेवन गुड़ के साथ करने से बवासीर रोग में लाभ होता है|
जोड़ो से दर्द में राहत पाने के लिए (Vidhara for joint pain)
- वृद्धदारुक मूल में बराबर भाग शतावर मूल मिलाकर काढ़ा बना लें| इस काढ़े को पीने से गठिया में लाभ होता है|
- इसके अलावा वृद्धदारुक के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से वात के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द आदि विकार ठीक होते हैं|
मूत्र रोग में (Vidhara for urinary disease)
- मूत्र रोग में पेशाब में जलन और दर्द होता है| पेशाब की मात्रा भी कम होती है| वृद्धदारुक पेशाब को बढ़ाता है और जलन तथा दर्द में आराम दिलाता है| दो भाग वृद्धदारुक की जड़ के चूर्ण में एक भाग गाय का दूध मिलाकर सेवन करें| ऐसा करने से आपको जरुर ही लाभ होता है|
पेट के फोड़ो को नाश करने के लिए
- कई बार पेट में फोड़ा हो जाता है जिसमें बहुत सारे छेद होते हैं| इन्हें दबाने से इनमें से पीव भी निकलता है| ऐसे फोड़े को विद्रधि यानी बहुछिद्रिल फोड़ा कहते हैं| ऐसे फोड़े पर वृद्धदारुक की जड़ को पीसकर लगाने से फोड़ा ठीक हो हो जाता है|
हाथीपाँव में राहत पाए
- गौमूत्र अथवा सौवीर कांजी के अनुपान से वृद्धदारुक चूर्ण का सेवन करें| इससे एक वर्ष पुराने एवं कठिनाई से ठीक होने वाले हाथीपांव या फाइलेरिया रोग में भी लाभ होता है|
- इसके अवाला वृद्धदारुक की जड़ के चूर्ण को कांजी के साथ सेवन करने से हांथीपाँव में लाभ होता है|
आँखों के लिए (Vidhara for eyes)
- विधारा आँखों के लिए भी काफी लाभकारी है| विधारा रस में बराबर भाग मधु मिलाकर आँखों में काजल की तरह लगाने से कुकूणक रोग यानी आँखों में लाली, खुजली, चौंधियाना आदि में लाभ होता है|
उंगलियों की सूजन मिटाने के लिए
- उँगलियों में आयी सूजन का मुख्य कारण होता है वात दोष का असंतुलित होना। विधारा के सेवन से इस सूजन को दूर करने में मदद मिलती है क्योंकि इसमें वात शामक गुण पाया जाता है|
गर्भधारण करने में विधारा
- यदि गर्भधारण करने में सफलता नहीं मिल रही हो तो विधारा का सेवन करें| विधारा तथा प्लक्ष की जड़ के काढ़े को एक वर्ष तक प्रतिदिन सुबह सेवन करें| इससे महिला के गर्भवती होने की सम्भावना बढ़ जाती है|
अंडकोष की सूजन में
- विधारा के पत्ते में एरण्ड तेल को लगाकर थोड़ा सा गरम करके अण्डकोष पर बाँध दें| इससे अण्डकोष की सूजन ठीक होती है|
याददाश्त बढ़ाने के लिए (Vidhara for increase memory power)
- यदि आपकी स्मरणशक्ति कमजोर है तो विधारा के चूर्ण में समभाग शतावरी चूर्ण मिलाने से याददाश्त तेज होती है|
उपदंश में राहत पाने के लिए विधारा
- उपदंश यानि प्रजजन संबंधित रोग यदि आप भी इस रोग से पीड़ित है तो विधारा के पत्तो का प्रयोग करने से लाभ होता है|
लीवर के लिए (Vidhara for liver)
- लिवर हमारे शरीर का एक अहम हिस्सा है| यह ठीक नही रहता है तो पूरा शरीर ही बीमार हो जाता है| अगर आपको लीवर संबंधित रोग है तो विधारा का प्रयोग करके लाभ पा सकते है|
काम शक्ति बढ़ाने के लिए विधारा
- यदि किसी महिला या पुरुष की कामशक्ति कमजोर है तो शक्ति को बढ़ाने के लिए विधारा का प्रयोग कर सकते है|
तनाव को कम करने के लिए (Vidhara for decrease stress level)
- यदि किसी टेंशन या किसी अन्य कारण से आप तनाव से ग्रस्त हो गये है, तो तनाव से छुटकारा पाने के लिए विधारा का प्रयोग कर सकते है|
सफेद पानी की समस्या में विधारा
- इस समस्या से महिलाए काफी अधिक परेशान रहती है| सफेद प्रदर यानी ल्यूकोरिया यह योनी से सफेद पानी जाने की एक बीमारी है| इस बीमारी से राहत पाने के लिए विधारा चूर्ण को ठंडे या सामान्य जल के साथ सेवन करने से सफेद पानी में लाभ होता है|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Vidhara)
- जड़
- पत्ती
सेवन मात्रा (Dosages of Vidhara)
- जूस -5 से 10 मिली
- चूर्ण -2 से 4 ग्राम
- क्वाथ -15 से 10 मिली
विधारा से निर्मित औषधियां
- वृद्धदारुकसमचूर्ण