द्रोणपुष्पी (Dronapushpi)
द्रोणपुष्पी का परिचय:(Introduction of Dronapushpi)
द्रोणपुष्पी क्या है? (Dronapushpi kya hai?)
यह तिली के पौधे के समान दिखने वाला द्रोणपुष्पी जिसे हम और आप गुम्मा के नाम से भी जानते है| यह पूरे भारत में पाया जाता है| यह विशेष कर के खेतो में आपको आसानी से मिल जायेगा| हिमालय के पहाड़ो पर बहुतायत मात्रा में मिलता है| इसका उपयोग प्राचीन काल से ही किया जाता आ रहा है| आयुर्वेंद में प्राकृतिक संपदाओं सहित आसपास उपलब्ध पेड़ पौधों से भी कई गुणकारी औषधी तैयार होती है जो जीवन रक्षक होने के साथ ही विभिन्न रोगों में लाभकारी है|
औषधीय गुणों से भरपुर इस पौधे से मनुष्य एवं पशुओं के विभिन्न रोगों का इलाज होता है, क्या आपको पता है की इस पौधे में बॉटनिकल नाम ल्युकस सेफालोटस है| जो आयुर्वेद में चिकित्सा के रूप में प्रयोग किया जाता है| इसका प्रयोग पेट सहित मूत्र रोग व नेत्र रोग या अन्य रोगो के इलाज किया जाता है|
इसके फूलों की आकृति प्याले या मटके के समान होने कारण इसे द्रोणपुष्पी कहा जाता है| आयुर्वेद में द्रोणपुष्पी के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं जो आपको जानना जरूरी है, क्योंकि आप रोम छिद्र की सूजन, गठिया, एनीमिया, पीलिया आदि में द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण का फायदा ले सकते है| आइए इसके अन्य लाभों के बारे में आपको विस्तार से परिचित करवाते है|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) और प्रजातियाँ (Dronapushpi ki akriti or prajatiya)
द्रोणपुष्पी के फूल द्रोण, दोना या प्याला के जैसे होते हैं, इसलिए इसे द्रोणपुष्पी कहा जाता है| द्रोणपुष्पी का पौधा 60-90 सेमी ऊँचा, सीधा या फैला हुआ होता है| इसके तने और इसकी शाखाएँ चतुष्कोणीय, रोमश होती हैं| इसके पत्ते सीधे, लम्बे, अण्डाकार या ह्रदयकार होते है| इसके पत्तों में गंध होती है और यह स्वाद में कड़वा होता है|
इसके फूल छोटे, सफेद रंग होते हैं| इसके फल 4 मिमी लम्बे, अण्डाकार, भूरे रंग के और चिकने होते हैं| इसके बीज छोटे,चिकने, भूरे रंग के होते हैं| इसकी जड़ सफेद रंग की और स्वाद में चरपरी होती है| इसके पौधे में फूल और फल अगस्त से दिसम्बर तक होता है|
Leucaszeylanica(द्रोणपुष्पी)
यह 30-60 मेसी तक ऊँचा अल वर्ष तक जीवित रहने वाला पौधा होता है| इसकी पत्तियां चपटी व रखादर भालाकर आगे से नुकीली होती है| इसके फूल गोलाकार सफेद रंग के होते है| फल चिकने व भूरे रंग के होते है| यह कफ – पित्त शामक, बुखार को दूर करने वाला दिमाग के रोगो, कवक रोधी को दूर करने वाला होता है|
Leucaszeylanica (R.Br.)क्षुद्र द्रोणकष्पी
यह पौधा 50-60 सेमी ऊँचा, और एक वर्ष तक जीवित रहने वाला है| इसके तने चतुष्कोणीय होती हैं| इसकी पत्तियां रेखाकार, भालाकार, और रोमश होती है| इसके शाखाओं के ऊपरी भाग पर गुच्छों में सफेद रंग के फूल आते हैं| इसके फल आयताकार,त्रिकोणीय एवं चक्करदार होते हैं| इसका प्रयोग अरुचि पेट फूलना, दर्द, टाइफाइड, बुखार के कारण होने वाली भूख की कमी, और पेट के रोगों के इलाज में किया जाता है|
द्रोणपुष्पी के सामान्य नाम (Dronapushpi common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Leucas cephalotus |
अंग्रेजी (English) | thumbe |
हिंदी (Hindi) | गूमाडलेडोना, गोया, मोरापाती, धुरपीसग |
संस्कृत (Sanskrit) | द्रोणपुष्पी, फलेपुष्पा, पालिंदी, कुंभयोनिका, द्रोणा |
अन्य (Other) | तुम्बे (कन्नड़ ) दोशिनाकुबो (गुजराती) तुम्बा (मराठी) गुल्डोडा (पंजाबी) कोकरातासिल्टा (तमिल) पेड्डातुम्नी (तेलगु) घलघसे (बंगाली) सयपत्री (नेपाली) तुम्बा (मलयालम) तुम्बा (राजस्थानी) |
कुल (Family) | Lamiaceae |
द्रोणपुष्पी के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Dronapushpi ke Ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | कफवातशामक (pacifies cough and vata) |
रस (Taste) | कटु (pungent) |
गुण (Qualities) | गुरु (heavy), रुक्ष (dry), तीक्ष्ण (strong) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | जंतुघ्न, विषघ्न, दीपन, अनुलोमन, रेचन |
फलेपुष्पा/द्रोणपुष्पी के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Dronapushpi ke fayde or upyog)
विषम ज्वर में द्रोणपुष्पी के फायदे (Dronapushpi for fever)
- यदि आप बुखार से परेशान है तो इसके पंचांग के काढ़े का सेवन करने से विषमज्वर में लाभ होता है|
- द्रोणपुष्पी पंचांग में पित्तपापड़ा, सोंठ, गिलोय और चिरायता को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें| फिर इस काढ़ा को पीने से टाइफाइ बुखार में लाभ होता है|
हिस्टीरिया में (Dronapushpi for hysteria)
- हीस्टीरिया के लिए द्रोणपुष्पी फायदेमंद है| द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर नहाने से हीस्टीरिया का इलाज होता है| बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर मिलें|
अनिद्रा में (Dronapushpi for insomnia)
- यदि आपको नींद नही आती है तो आप इस द्रोणपुष्पी का उपयोग अनिद्रा की परेशानी में फायदेमंद होता है| इसके लिए द्रोणपुष्पी के बीज का काढ़ा का सेवन करें| इससे नींद अच्छी आती है|
दाद खुजली में (Dronapushpi for ringworm and itching)
- आप दाद-खुजली से परेशान है तो आप द्रोणपुष्पी के फायदे ले सकते हैं| इस के पत्ते के रस या पेस्ट से लेप करें| इससे घाव, शरीर की जलन, दाद और खुजली ठीक होता है|
सिर दर्द में (Dronapushpi for head ache)
- आजकल टेंशन व तनाव के सिर दर्द तो एक आम बात हो गई है इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए द्रोणपुष्पी को पत्तो के रस को सिर पर लगाने से सिर दर्द का शमन होता है|
जुखाम में (Dronapushpi for cold)
- अगर आप सर्दी के कारण जुखाम से परेशान है तो द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर नहाने से जुखाम ठीक होता है|
- इसके अलावा द्रोणपुष्पी के पत्ते में अदरक का रस तथा मुलेठी का चूर्ण मिलाकर काढ़ा बना ले, फिर इसमे मिश्री मिलाकर सेवन करने से जुखाम से छुटकारा मलता है|
पीलिया में (Dronapushpi for jaundice)
- यदि आपको इस रोग के कारण खून की कमी हो रही है या कमजोरी हो रही है तो इस के रस को काजल की तरह लगाने और नाक के रास्ते लेने से एनीमिया और पीलिया में फायदा होता है| आपको इस रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाना है, और इस्तेमाल करना है|
- द्रोणपुष्पी के रस में काली मरिच का चूर्ण और सेंधा नमक मिला लें| इसे दिन में तीन बार सेवन करने से एनीमिया और पीलिया में लाभ होता है|
वात विकार के लिए द्रोणपुष्पी
- यदि आप वात विकारो के कारण बहुत ही परेशान है तो द्रोषपुष्पी वात दोष को भी ठीक करता है| द्रोणपुष्पी रस में मधु मिलाकर सेवन करने से वात दोष से संबंधित विकारों ठीक होता है|
बिच्छू के काटने पर द्रोणपुष्पी
- बिच्छू डंक मारे तो घबराएं नहीं| द्रोणपुष्पी के पत्तों को पीसकर डंक वाले स्थान पर लगाएं| इससे बिच्छू के डंक से होने वाले नुकसान कम हो जाते हैं|
तिल्ली के विकार में (Dronapushpi for spleen)
- लिवर और तिल्ली विकार में इस की जड़ का चूर्ण लें| इसमें एक भाग पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से लिवर और तिल्ली विकारों में लाभ होता है|
मधुमेह में (Dronapushpi for diabetes)
- इस रोग से परेशान होने वाले व्याक्तियों को घबराने की जरुरत नही है| इस रोग के लिए द्रोणपुष्पी के पत्तो के रस में काली मिर्च का चूर्ण डालकर सेवन करने से मधुमेह में लाभ मिलता है|
अजीर्ण में द्रोणपुष्पी
- आप अजीर्ण के इलाज के लिए भी द्रोणपुष्पी का सेवन कर सकते हैं| इस के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से अजीर्ण या बदहजमी में लाभ होता है, और भूख बढ़ती है|
बुखार में (Dronapushpi for fever)
- यदि आपको कमजोरी या सर्दी या किसी अन्य कारण से आपको बुखार है तो आप इस के रस में पित्तपापडा चूर्ण, नागरमोथा चूर्ण और चिरायता चूर्ण मिला लें| इसे पीसकर गोलियां बनाकर सेवन करने से बुखार में लाभ होता है|
खांसी में (Dronapushpi for cough)
- यदि आपको खांसी की समस्या है तो इस के पत्तो के रस में शहद मिलाकर सेवण करने से खांसी से छुटकारा मिलता है|
जोड़ो के दर्द में (Dronapushpi for joint pain)
- यदि आप जोड़ो का दर्द या गठिया दर्द के रोग से परेशान है तो द्रोणपुष्पी के पंचाग का काढ़ा बनाकर सेवन करने से या जोड़ो पर लगाने से गठिया रोग से छुटकारा मिलता है|
रोमकूप में द्रोणपुष्पी का उपयोग द्रोणपुष्पी
- रोम छिद्र की सूजन के इलाज के लिए द्रोणपुष्पी का उपयोग लाभदायक होता है| इस के पत्ते का भस्म बना लें| इसको घोड़े के पेशाब में मिला लें, इसका लेप करें। इससे रोम छिद्र की सूजन कम होती है|
मिर्गी में रोग में द्रोणपुष्पी (Dronapushpi for epilepsy)
- इस रोग से ग्रस्त लोगों को इस के पंचाग का काढ़ा बनाकर इस काढ़े से स्नान करवाने से मिर्गी के रोग में लाभ मिलता है|
आँखों के रोग में (Dronapushpi for eyes)
- यदि आप आँखों के रोग से परेशान तो द्रोणपुष्पी को चावल के धुले हुए पानी से पीस लें, इसे एक, दो बूंद की मात्रा में नाक से लें| इससे आंखों के रोग में लाभ होता है| इसके साथ ही इसे काजल की तरह लगाने से पीलिया रोग में भी लाभ होता है|
द्रोणपुष्पी के उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Dronapushpi)
- जड़
- पत्ती
- बीज
- पंचांग
द्रोणपुष्पी की सेवन मात्रा (Dosages of Dronapushpi)
- जूस -5 से 10 मिली
- क्वाथ -10 30 मिली या चिकित्सक के अनुसार