स्मृति सागर रस: जाने इस औषधि का राज़, किस प्रकार करती हैं ये मस्तिष्क से जुड़ी 8 समस्याओं का समाधान
स्मृति सागर रस का परिचय (Smriti sagar ras ka introduction: benefits, dosage)
स्मृति सागर रस क्या होता हैं? (Smriti sagar ras kya hai?)
यह एक आयुर्वेदिक औषधि होती हैं जो मुख्य रूप से मानसिक रोगों को जड़ से खत्म करती हैं | यह औषधि तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क से जुडी हुई समस्याओं के लिए प्रयोग की जाती हैं| स्मृति सागर रस का उपयोग यादाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क को मजबूत बनाने में और पागलपन को दूर करने में किया जाता हैं |
उन्माद, हिस्टीरिया, मिर्गी, लकवा जैसे मानसिक रोगों का स्मृति सागर रस एक रामबाण इलाज़ हैं | यह औषधि वात, पित्त और कफ का भी संतुलन करती हैं |
स्मृति सागर रस के घटक (Smriti sagar ras ke ghatak dravya)
- शुद्ध पारद
- गंधक शुद्ध
- शुद्ध हरताल
- मैनसिल शुद्ध
- ताम्रभस्म
- बच का क्वाथ
- ब्राह्मी का क्वाथ
- मालकांगनी का तेल
स्मृति सागर रस बनाने की विधि (Smriti sagar ras banane ki vidhi)
इस औषधि को बनाने के लिए तरल पदार्थो को छोड़कर सारी औषधियों को उचित मात्रा में ले कर, उन्हें मिला बाकी बचे सभी द्रव्य पदार्थो की 21-21 भावनाएं दे कर गोलिया बनाकर सुखा दें |
स्मृति सागर रस के फायदे (Smriti sagar ras ke fayde)
स्मरण शक्ति को बढ़ाएं (for memory strength)
कभी कभी कुछ मनुष्यों में स्वस्थ होते हुए भी यादाश्त की कमी होती हैं | ऐसे में कफ की वृद्धि जरुर होती हैं | कफ स्मरण शक्ति को कम करने का काम करता हैं |
यह औषधि स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए परम उपयोगी हैं | यदि इस औषधि के साथ सारस्वतारिष्ट का सेवन किया जाये तो यह औषधि बहुत जल्द और अच्छा प्रभाव दिखाती हैं | इसे बनाने में पारे का प्रयोग किया गया हैं इसलिए इसे चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए |
उन्माद रोग में
यह मस्तिष्क से जुड़ा हुआ ही एक रोग हैं | इसका मुख्य कारण मस्तिष्क में होने वाली विकृति हैं | इसके अलावा मानसिक चिंता, दुख, शोक, भय, किसी काम में दिन रात लगे रहना, गाँजा, भांग, शराब का अधिक सेवन करना, अति स्त्री प्रसंग और माथे में चोट लगना आदि इसके कारण हो सकते हैं |
कभी कभी शरीर में पित्त की अचानक वृद्धि हो जाने पर शरीर में गर्मी अधिक हो जाती हैं इससे यह गर्मी मस्तिष्क की और जा कर वहां की नसों को कमजोर बना देती हैं | इस स्थिति में स्मृति सागर रस का प्रयोग यदि किया जाता हैं तो एक चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता हैं |
उन्माद रोग में इस रस के साथ सर्पगंधा चूर्ण का सेवन करने से विशेष लाभ मिलता हैं |
हिस्टीरिया में (for hysteria)
हिस्टीरिया रोग को आयुर्वेद में गर्भाशायोंन्माद कहा जाता हैं | आयुर्वेद के अनुसार यह रोग नव युवतियों में संभोग की इच्छा तृप्ति ना होने पर सामान्य या अधिकतर होता हैं | जो युवतियां अधिक चंचल, ज्यादा गुस्से वाली तथा कम सहन शक्ति वाली होती हैं उन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता हैं |
इसके अतिरिक्त अधिक चिंता करना, मानसिक चोट, प्रसव रोग, मासिक धर्म की गड़बड़ी भी इस रोग के कारण हो सकते हैं | इनके कारण इस रोग में देखने, सुनने, सूंघने, बोलने में विकार आ जाते हैं | कभी कभी तो इसका प्रभाव आँखों पर भी पड़ता हैं |
ऐसी अवस्था में व्यक्ति को दौरा पड़ता हैं जिसमे दांत बैठ जाते हैं, शरीर अकड़ जाता हैं, रोगी हाथ पैर पटकने लगता हैं और कभी कभी मुंह से जाग भी निकलते हैं | इस स्थिति में स्मृति सागर रस का उपयोग करना चाहिए |
यदि पित्त की अधिकता हो तो के साथ स्वर्णमाक्षिक भस्म और प्रवाल पिष्टी का सेवन करना चाहिए | यदि कफ और मासिक धर्म की गड़बड़ी के कारण यह रोग हो तो केवल स्मृति सागर रस का प्रयोग करना चाहिए |
धनुष्टंकार रोग में
बच्चो के धनुष्टंकार रोग में भी इस रसायन का प्रयोग बहुत अच्छा होता हैं | इस बीमारी में रोगी को बार बार दौरा होता हैं और रोगी दौरे के समय बेहोश हो जाता हैं, श्वास लेने की गति बहुत धीमी होने लगती हैं, शरीर ठंडा पड़ जाता हैं, झटके महसूस होने लगते हैं | बच्चो के लिए यह बहुत हानिकारक रोग हैं | ऐसे में इस रस का सेवन करने से इस रोग में सुधार होता हैं |
मिर्गी रोग में (for Epilepsy)
इस रोग के लक्षण कुछ कुछ हिस्टीरिया से मिलते जुलते होते हैं | चूँकि यह रोग भी मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र से जुड़ा हुआ हैं तो इसे भी इस औषधि का सेवन करके समाप्त किया जा सकता हैं |
पक्षाघात में (for paralysis)
इसे लकवा भी कहा जाता हैं| आयुर्वेद के अनुसार ठन्डे स्थानों पर सोने, गिले वस्त्र पहने रखना, ठन्डे पत्थरों पर बैठे रहना आदि कारण होते हैं| इसमें व्यक्ति के शरीर का कोई हिस्सा या अंग सुन्न पड़ जाता हैं|
पक्षाघात की जीर्णता में इस औषधि का बहुत अच्छा प्रयोग होता हैं | इसके जीर्णता में एकांगवीर और इस रस का सेवन यदि कुछ दिनों तक एक ही दिन में अलग अलग समय पर देते रहने से उत्तम परिणाम मिलते हैं |
सन्यास (for coma)
यह एक बहुत कठिन बीमारी होती हैं | इसमें व्यक्ति पड़ा रहता हैं, हाथ पैर काम नही करते, आँखे भी बंद रहती हैं| ऐसा प्रतीत होता हैं जैसे कोई बेहोश इन्सान पड़ा हो | इस रोग में यदि इस औषधि का सेवन किया जाये तो काफी फायदा मिलता हैं |
आक्षेपक वात में
इस रोग में कमर और रीढ़ की हड्डी में भयंकर पीड़ा, अनिद्रा, बहुत तेज बुखार होना, झटके आते रहना, पैरो का ठंडा पड़ना, शरीर में झनझनाहट होना जैसे और कफ और वात प्रधान लक्षण होने पर स्मृति सागर रस के साथ सितोपलादि चूर्ण मिलकर तुलसी के रस और शहद के साथ देने से जल्द आराम मिलता हैं |
मासिकधर्म की निवृति
जब महिलाओं में मासिक धर्म की निवृति होने के कारण किसी किसी को सिर दर्द, कमर में जकड़न, और कभी कभी तो मानसिक आघात होने से उन्माद रोग के लक्षण प्रतीत होने लगते हैं | इस पर यह रस और महावातविध्वंस रस मिला कर जटामांसी चूर्ण और घी के साथ सेवन करने से इसमें लाभ मिलता हैं |
स्मृति सागर रस की सेवन विधि (Smriti sagar ras ki sevan vidhi)
• 1 से 2 गोलों का सेवन रोग के अनुसार चिकत्सक से परामर्श लेकर करना चाहिए |
स्मृति सागर रस का सेवन करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ (Smriti sagar ras ke sevan ki savdhaniya)
- गर्भवती महिलाओं को इस औषधि से परहेज करना चाहिए |
- इस औषधि का सेवन चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए क्योंकि इसमें पारा मिला होता हैं|
- बच्चो को इसका सेवन अधिक मात्रा में नही करना चाहिए |
स्मृति सागर रस की उपलब्धता (Smriti sagar ras ki uplabdhta)
- बैधनाथ स्मृति सागर रस (baidyanath Smriti sagar ras)
- डाबर स्मृति सागर रस (dabur Smriti sagar ras)
- धूतपापेश्वर स्मृति सागर रस ()dhootpapeshwar Smriti sagar ras
- वी.एच.सी.ए. स्मृति सागर रस (vhca Smriti sagar ras)
- बेसिक आयुर्वेदा स्मृति सागर रस (basic ayurveda Smriti sagar ras)
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