आक (Aak)
आक का परिचय: (Introduction of Aak)
आक क्या है? (What is Aak)
आयुर्वेद में एक औषधि है आक | जिसे लगभग सभी लोग जहरीली समझते है और उसके गुणों को अनदेखा कर देते है| परन्तु ऐसा बिलकुल भी नही है| जिन लोगो का इसका उपयोग सही प्रकार से करना नही आता उन लोगो के लिए तो निश्चित रूप से जहरीली है| परन्तु जिन लोगो का इसका प्रयोग करना आता है उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है|
इसके पौधे में एक ख़ास बात होती है कि जब जब सूर्य की किरणें तेज रहती है यह पौधा भी उतना ही फलता फूलता है| इसके विपरीत जब जब सूर्य की किरणें कम होती है या उसके तापमान में कोई परिवर्तन आता है तो यह भी नष्ट हो जाता है| उदाहरण के लिए गर्मी में यह खूब खिलता है जबकि बारिश में तो जैसे यह गल ही जाता है|
इसके अलावा इसे और भी कई नामो से जाना जाता है| उदाहरण के लिए अर्कः (सूर्य के समान उष्ण और तीक्ष्ण), तूलफलः (रुइदार फल होने से), क्षीरपर्णी (पत्तों में दूध होने से) आदि| यदि इसका सेवन किसी अच्छे वैद्य की देख रेख में किया जाता है तो यह अनगिनत बिमारियों का शमन करने की क्षमता रखता है| इसके अलावा यदि इसे बिना किसी वैद्य की देखरेख के सेवन किया जाता है तो मृत्यु तक हो सकती है|
तो आइये आज परिचित कराते है आपको आक और उससे होने वाले फायदों के बारे में | किसी भी रोग में इसका सेवन करने से पहले किसी अच्छे वैद्य से परामर्श लें या वैद्य की देखरेख में ही इसका सेवन करें|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Aak ki akriti)
आक के पौधे लगभग 5 मीटर तक ऊँचे हो सकते है| इसके तने की छाल मुलायम होती है| इस पौधे के हर अंग पर रुई के समान रवें रहते है| इसके पत्तों का आकार मनुष्य के ह्रदय के आकार का होता है| इसके खुशबूदार फूल गुच्छों में आते है जिनके रंग सफ़ेद, लाल, बैंगनी आदि हो सकते है| अंडाकार फलों के अन्दर इसके बीज रहते है जो आपस में चिपके रहते है| इसके किसी भी भाग को तोड़ने पर दूध के समान एक पदार्थ निकलता है|
आक की प्रजातियाँ (Aak ki prajatiya)
लाल आक
इस आक से कम दुग्ध निकलता है| इसके फूलों की आकृति कटोरी के समान होती है| जिनका रंग सफ़ेद होता है तथा अन्दर से कुछ लाल और बैंगनी रंग भी दिखाई पड़ता है|
सफ़ेद आक
इस आक में दूध की मात्रा ज्यादा होती है| इसे लोग मंदिरों में भी इस्तेमाल करते है| इसके फूल लाल आक से बड़े होते है| यह हल्का पीला रंग लिए होता है|
रजत आक
इसके फूलों का रंग चांदी के समान होने के कारण ही इसे रजत आक या राजार्क कहा जाता है| इसके एक पौधे में एक ही शाखा लगती है तथा उसमे भी चार पुष्प लगते है| यह एक दुर्लभ जाति मानी जाती है|
इसके अलावा इसकी एक और प्रजाति पायी जाती है जिसके फूलों का रंग कुछ पिस्तई दिखाई देता है|
आक के सामान्य नाम (Aak common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Calotropis procera |
अंग्रेजी (English) | Giant milk weed |
हिंदी (Hindi) | आक, अकद, मदार, सफेदक |
संस्कृत (Sanskrit) | अर्कः (सूर्य के समान उष्ण और तीक्ष्ण), तूलफलः (रुइदार फल होने से), क्षीरपर्णी (पत्तों में दूध होने से), वसुकः, विकिरण, मंदारः, प्रतापसः, रविः |
अन्य (Other) | अक (उत्तराखंड) सेतो आंक (नेपाली) नानो अनकाडो (गुजराती) मंदार (मराठी) आक (पंजाबी) |
कुल (Family) | Asclepiadaceae |
आक के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Aak ke ayurvedic gun)
दोष (Dosha) | त्रिदोषसंतुलन (balance tridosha) |
रस (Taste) | कटु (pungent), तिक्त (bitter) |
गुण (Qualities) | लघु (light), तीक्ष्ण (strong), रुक्ष (dry) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | उदररोग शामक, श्वासरोगशामक, दस्तावर |
आक के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Aak ke fayde or upyog)
कब्ज़ में लाभदायक (Aak for constipation)
- सफ़ेद अर्क या आक के फूलों का सेवन करने से कब्ज़ की समस्या में जल्द ही लाभ होता है| इसके सेवन से पाचक अग्नि तीव्र होती है तथा कब्ज़ की समाप्ति होती है|
कुष्ठ रोग का शमन करे (Aak for leprosy)
- त्वचा से जुड़े रोगों को कुष्ठ रोग में रखा या दर्शाया गया है| इस औषधि की सूखी जड़ का काढ़ा बना कर पीने से कुष्ठ में लाभ मिलता है|
- पौधे की जड़ की छाल और सिरके को पीस कर लेप करने से भी कुष्ठ का शमन होता है|
- दिन में दो बार इसके सूखे हुए फूलों का चूर्ण बना कर पानी के साथ सेवन करना चाहिए| कुष्ठ में जल्द ही लाभ मिलेगा|
- बिलकुल नए मिट्टी के बर्तन में आक के फल डाल कर उसका मुंह बंद कर दें| इसके बाद बर्तन को आग में डाल दें| बाद में बर्तन के अन्दर वाली भस्म में सरसों का तेल मिलाकर लगाने से कुष्ठ का समापन होता है|
- कपाल नामक कुष्ठ में गन्ने के रस में आक के क्षर को मिला कर लेप करना चाहिए| इससे कपाल कुष्ठ में लाभ मिलता है|
- बावची और हरताल का चूर्ण बना कर उसे आक के दूध में मिला कर शरीर पर मलने से सफ़ेद कुष्ठ का शमन होता है|
घाव को भरने के लिए (Aak for wound)
- यदि घाव पर आक की रुई को रख कर बाँध दिया जाता है तो ऐसे में घाव जल्दी भरने लगता है| रोजाना उस रुई को बदलना चाहिए|
- सूखे हुए पत्तों का चूर्ण बना कर उसे घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है|
- सफ़ेद अर्क को नीम्बू के रस में मिलाकर लोहे पर घिस कर घाव पर लगाने से जल्द ही घाव ठीक होता है|
दाद, खाज और खुजली को दूर करें (Aak for skin disease)
- अर्क के दूध और मधु को मिलाकर दाद पर लगाने से दाद जल्द ही सही होता है|
- आक की जड़ का चूर्ण बना कर उसे दही में घोट कर प्रभावित स्थान पर लगाने से दाद का शमन होता है|
- खुजली वाले स्थान पर यदि अर्क से निकले हुए दूध को नारियल के तेल में मिलाकर लगाया जाता है तो खुजली का शमन होता है|
- अर्क के पत्तों के रस के साथ हल्दी का चूर्ण तथा सरसों के तेल को धीमी आंच पर पकाएं| जब केवल तेल रह जाये तो इसे सुरक्षित रख लें| इसे खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली का शमन होता है|
- आक के दूध और सरसों के तेल को उचित मात्रा में पकाये| जब केवल तेल रह जाए तो इसे उतार कर सुरक्षित पत्र में भर लें| इस तेल को नहाने से तीन घंटे पहले लगा लें| ऐसा करने से खाज, खुजली का शमन होता है|
तिल्ली के विकारों में आक (Aak for spleen disease)
- अर्क के पत्तों तथा इसमें उचित मात्रा में सैंधा नमक मिला कर, मिट्टी के बर्तन में डाल कर उस बर्तन को आग में डाल दें| इससे बनने वाली राख का सेवन उचित मात्रा में वैद्यके अनुसार करने से तिल्ली विकारों का शमन होता है|
- गुल्म रोग होने पर भी इसी औषधि का प्रयोग काफी हद तक लाभ देता है|
बवासीर में (Aak for piles)
- बवासीर में राई पर उचित मात्रा में (एक से दो बूंद) अर्क का दूध डालें| इस राई पर यवक्षार का बुरक कर बताशे में रख कर सेवन करने से अर्श या बवासीर की समस्या में लाभ होता है|
- शौच के बाद अर्क के पत्तों को गुदा द्वार पर रगड़ने से अर्श का शमन होता है| पत्तों को रगड़ते समय ध्यान रखे कि मस्सों पर अर्क का दूध न लगे|
भगंदर में आक
- भगंदर में यदि आक के दूध के साथ दारूहल्दी का चूर्ण बना कर खरल कर के लगाया जाता है तो भगंदर में लाभ मिलता है|
- अर्क के दूध में कपास की रुई को डाल कर बत्ती बना लें| इस बत्ती को सरसों के तेल में डाल कर भगंदर पर लगाने से इसका शमन होता है|
वीर्य विकारों का शमन करें आक का प्रयोग (Aak for semen disease)
- अर्क की सूखी जड़ का चूर्ण बना लें| इस चूर्ण को उचित मात्रा में दूध में उबाल कर दही जमा लें| इस दही का घी निकाल लें| इस घी का सेवन करने से सभी प्रकार के वीर्य दोष दूर होते है इसके साथ ही नपुसंकता से भी छुटकारा मिलता है|
- इसके अलावा सफ़ेद अर्क के फूल का उचित विधि से सेवन करने पर वीर्य में वृद्धि होती है|
अस्थमा और खांसी में (Aak for cough and asthma)
- अर्क के पत्तों पर जमे हुए सफ़ेद पदार्थ को इकट्ठा कर लें| अब इसकी बिलकुल छोटी छोटी गोलियां बना कर दिन में दो बार लेने से अस्थमा और खांसी में कुछ ही दिनों में लाभ दिखता है| इन गोलियों को खाने के बाद पान का सेवन भी करना चाहिए|
- इस पौधे के जड़ की छाल को पीस कर इसमें शुंठी का चूर्ण मिला लें| इसके साथ ही इसमें मधु भी मिला लें| इसका सेवन करने से पुरानी खांसी का नाश तथा भी समाप्त होता है|
- अर्क की मुलायम शाखा और फूलों को पीस कर, घी में सेक लें| अब इसमें गुड़ मिलाकर रोज लेने से पुरानी से पुरानी खांसी का भी शमन होता है| इसके साथ ही यह क्षय रोग का भी समापन करता है|
कीड़ों को मारे आक
- लाल अर्क का सावधानीपूर्वक सेवन करना पेट और आँतों के कीड़ों का शमन करने के लिए बहुत अच्छा उपाय माना जाता है|
रक्तपित्त का शमन करे (Aak for blood bile)
- लाल आक के फूल का सेवन यदि नकसीर या रक्तपित्त के रोगियों को कराया जाता है तो रक्तपित्त शांत होता है|
जोड़ो के दर्द और सूजन में (Aak for joints pain and swelling)
- कूटे हुए आक के पत्तों को एक पोटली में बांध लें| इस पोटली को तवे पर घी लगा कर गर्म करें| अब इस गर्म पोटली का जोड़ो में दर्द, सूजन और चुभन वाले स्थान पर सेक कर लें| सेक के बाद पटों को घी के साथ गर्म कर के प्रभावित स्थान पर बांध दें| ऐसा करने से आमवात और गठिया रोग में भी लाभ मिलता है|
- अर्क के फूल, सोंठ, काली मिर्च, नागरमोथा और हल्दी को उचित मात्रा में पीस कर छोटी छोटी गोलियां बना लें| इन गोलियों का सेवन करने से जोड़ो के दर्द का शमन होता है|
- अर्क की कद की छाल, काला नमक, काली मिर्च और कुटकी को उचित मात्रा में ले कर पीस लें| इनकी छोटी छोटी गोलियों का सेवन दर्द होने पर गर्म पानी के साथ करें| ऐसा करने से दर्द का शमन होता है|
झुर्रियां और दाग धब्बों को मिटायें आक
- सबसे पहले हल्दी को अच्छे से कूट कर उसका चूर्ण बना लें| इसके बाद अर्क के दूध और गुलाब जल में इसे मिलाकर आँखों के अलावा झुर्रियुक्त और दाग धब्बों वाले स्थान पर लगायें| इससे झुर्रियां मिटती है तथा चेहरा चमकदार बनता है|
खून को साफ़ करे आक का सेवन आक
- अर्क की जड़ की छाल का सेवन करने से खून साफ़ होता है तथा सभी विषाक्त पदार्थ बाहर निकाल जाते है| इसका सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करना चाहिए|
ह्रदय के लिए (Aak for heart)
- इसका सेवन करने से ह्रदय की गति तेज होती है तथा ह्रदय को बल भी मिलता है| इसके लिए इसकी जड़ की छाल का सेवन सबसे अच्छा रहता है|
बुखार को दूर करें (Aak for fever)
- अर्क के दूध और उचित मात्रा में मिश्री को अच्छे से खरल कर के रख दें| इसका सेवन गर्म या गुनगुने पानी के साथ करने से मलेरिया के समय आने वाला बुखार का शमन होता है|
- अर्क की जड़ की छाल की भस्म बना लें| इस भस्म और शक्कर को अच्छे से घोट लें, खरल कर ले| बुखार आने के दो घंटे पहले इसका सेवन सेवन करने से बुखार का शमन होता है|
- चिरायते का रस, कच्चे पपीते के रस को आक के दूध के साथ उचित मात्रा में मिला कर लेने से विषम ज्वर का नाश होता है|
- अर्क के पीले पत्तों की भस्म बना कर मधु के साथ लेने से बुखार का नाश होता है|
कान दर्द को समाप्त करें (Aak for ear)
- आक के पीले पीले पके हुए तथा बिना छेद वाले पत्तों पर घी डालकर उन्हें आग में तपा लें| इससे निकलने वाले रस को यदि कान में डाला जाता है तो इससे कान दर्द का शमन होता है|
- आक के पत्तों को गर्म कर के उसमे तेल और नमक डाल लें| इसके बाद इन पत्तों का रस निकाल लें| इस रस को कान में डालने से सभी प्रकार के कान से जुड़े रोगों का शमन होता है|
लकवे में लाभदायक आक का सेवन (Aak for paralysis)
- सबसे पहले अर्क की जड़ का काढ़ा बना लें| अब इसमें मिश्री, पीपल, वंशलोचन, इलायची, काली मिर्च और मुलेठी का चूर्ण मिला कर एक पेय बना लें| अब इसे दिन में एक बार सेवन करें| इससे लकवे में लाभ मिलेगा| इसके साथ ही अस्थमा, पेट के रोग, बदन दर्द आदि का भी शमन होगा|
- अर्क के दूध में मालकांगनी का तेल मिला कर शरीर पर मलने और मालिश करने से भी लकवे का शमन होता है|
- अर्क की मूल को घिस कर लगाने से लकवे में आराम मिलता है|
प्रमेह में
- प्रमेह रोग में यदि आक के तेल का सेवन किया जाता है तो इससे प्रमेह में लाभ मिलता है|
माथे में होने वाली फुंसियों में
- अर्क से निकाले गए दूध को यदि सिर पर लगाया जाता है तो सिर पर होने वाली फुंसियों का शमन होता है| इसके साथ ही रुसी, जलन, दर्द और खुजली में भी लाभ मिलता है|
माइग्रेन या आधासीसी में आक
- अर्क के पके हुए पत्तों के रस को सूंघने से आधासीसी के दर्द में लाभ मिलता है|
- अर्क की जड़ की छाल के साथ इलायची, पिपरमेंट और कपूर को मच्छी तरह खरल कर के बंद पात्र में रख लें| इसे सूंघने से माइग्रेन का दर्द कम होता है|
नेत्र रोगों का शमन करें (Aak for eyes)
- आक की जड़ को पीस कर गुलाब के जल में 5 से 10 मिनिट तक रखें| अब इस जल को छान लें| इस जल को अब आँखों में बहुत सीमित मात्रा में एक से तीन बूंद तक डालें| इससे आँखों का लालपन, दर्द और कंडू का समापन होता है|
दांत दर्द में (Aak for teeth)
- अर्क के दूध में नमक मिला कर दांतों पर लगाने से दांत दर्द का शमन होता है| ध्यान रहे दूध को अधिक मात्रा में न लगाये और मुंह के अन्दर न जाने दें| हिलते हुए दांत पे भी आक का दूध लगाने से आसानी से दांत को बाहर निकाला जा सकता है|
- अर्क के पत्तों और काली मिर्च को एक साथ पीस कर उसमे हल्दी और सैंधा नमक मिलाकर मंजन करने से दांतों में मजबूती आती है|
पेट में पानी भरने पर या जलोदर में
- इस पौधे के पत्तों और हल्दी को पीस कर गोलियां बना लें| इन गोलियों को शुद्ध जल के साथ लेने से जलोदर में लाभ मिलता है| इसके सेवन में केवल दूध और साबूदाने का उपयोग किया जाता है| इसके अलावा भीगे हुए जौ का पानी पिया जा सकता है|
- सैंधे नमक और अर्क के पत्तों की भस्म बना लें| इस भस्म को दिन में तीन बार छाछ के साथ लेने से जलोदर का समाधान होता है|
खूनी दस्त का समापन करें
- छाया में सूखी हुई जड़ की छाल को पीस कर ठन्डे पानी के साथ लेने से खूनी दस्त बंद होती है|
अजीर्ण होने पर
अर्क के पत्तों के रस की समान मात्रा में ग्वारपाठे का रसीला भाग लें| अब इनमे शक्कर मिला कर पका लें| जब शक्कर की चाशनी बन जाये तो इसे ठंडा कर के सुरक्षित रख लें| अजीर्ण होने की स्थिति में इसका सेवन करे| इससे अजीर्ण में लाभ मिलेगा|
हैजा या विसूचिका में
- अर्क की सूखी जड़ की छाल का चूर्ण लेकर समान मात्रा में इसे अदरक के रस के साथ खरल करें| इसके बाद इनकी गोलियां बना कर सुखा लें| इन गोलियों को शहद के साथ लेने से इस रोग में लाभ मिलता है|
- ग्वारपाठे के रसीले भाग में अर्क के फूल, सुहागे और काली मिर्च को खरल कर के गोलियां बना लें| दिन में दो बार इस गोली को लेने से हैजा रोग में लाभ मिलता है|
- अर्क के जड़े हुए पीत पत्र को कुछ मात्रा में लेकर जला दें| जब ये अच्छी तरह से जल जाये तो पात्र में पानी लेकर जले हुए पत्तों को डाल दें| इस पानी का सेवन हैजा पीड़ित व्यक्ति को उचित मात्रा में कराने से लाभ मिलता है|
पेट दर्द में (Aak for stomach pain)
- अर्क के पत्तों पर थोडा पुराना घी लगा कर इन्हें सेक कर पेट पर बांधने से पेट दर्द का शमन होता है|
- अर्क की सूखी हुई जड़ की छाल के चूर्ण में हरड, आंवला, बहेड़ा, सैंधा नमक और सोंफ का बारीक चूर्ण मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को लेने से पेट दर्द कम होता है|
- आक के पुष्प चूर्ण में पत्तों का रस मिला कर खूब अच्छी तरह से घोटें| अब इसमें सोंफ और अजवायन मिला लें| इसकी गोलिया बना कर गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट दर्द का शमन होता है|
खून की कमी को दूर करें (Aak for anemia)
- अर्क के पत्रों के साथ मिश्री मिलाकर इसे अच्छे से घोट लें| जब यह मिश्रण गोली बनाने लायक हो जाए तो इसकी गोलियां बना कर सेवन करने से खून की कमी दूर होती है|
- पके हुए अर्क के साफ़ पत्तें में चूना लगाकर चूर्ण बना लें| इस चूर्ण की छोटी छोटी गोलियां बनाकर लेने से पांडू रोग का समापन होता है|
पीलिया के लिए अर्क का प्रयोग (Aak for jaundice)
- अर्क की कोपल को प्रातः कल बिना कुछ खाये पान के पत्र के साथ खाने से पीलिया में लाभ होता है|
मूत्र सम्बन्धी रोगों में (Aak for urinary disease)
- यदि मूत्र त्यागते समय किसी प्रकार की रूकावट आती है जिसके कारण दर्द, जलन, बैचेनी उत्तपन होती है| तो ऐसे में बबुल की छाल के स्वरस और अर्क के दूध को उचित मात्रा में मिलाकर नाभि के पास लगाने से इस समस्या का समाधान होता है| कभी कभी इसे मूत्राशय के आस पास भी लगाया जाता है|
पथरी का शमन करें (Aak for calculus)
- पथरी से पीड़ित व्यक्ति यदि वैद्य के अनुसार आक का सेवन करता है तो इससे पथरी गल कर मूत्र मार्ग से बाहर आ जाती है|
उपदंश रोग को मिटायें
- अर्क की जड़ त्वक का चूर्ण बना कर उपदंश के घाव पर छिडकने से घावों में लाभ मिलता है|
- आक की जड़ का चूर्ण बना कर उसमे घी मिलाकर यदि उपदंश में उपयोग किया जाता है तो लाभ मिलता है|
- अर्क के पत्तों के बने काढ़े से उपदंश के घावों को धोने से लाभ मिलता है|
अन्डकोशो की सूजन का समापन करें
- छाया में सूखी हुई जड़ की छाल को कांजी के साथ अच्छे से घोट या पीस लें| इससे निर्मित लेप को लगाने से सूजन कम होती है|
मासिक धर्म के विकारों से छुटकारा दिलाये आक
- अर्क की मूल का चूर्ण बना कर उसे भांगरे के रस में अच्छे से घोट लें| अब इनकी गोलियां बना लें| दिन में दो बार इन गोलियों का सेवन करने से मासिक धर्म समय पर आता है|
- सफ़ेद अर्क की सूखी जड़ का चूर्ण बना कर उसे गाय के दूध के साथ पीने से मासिक धर्म की सभी समस्याएँ दूर होती है|
पैर के छालों को दूर करें
- ईश्वर के कई भक्त पैदल यात्रा करते है| उस समय पैरों में छालें होना एक आम बात होती है| ऐसे में आक के दूध को छालों पर लगाना चाहिए| इससे छालें समाप्त होते है|
हाथीपांव की समस्या में आक
- आक की छाल और हरड, आंवला और बहेड़ा का काढ़ा बना कर उसमे शहद और मिश्री डालकर पिलाने से लाभ मिलता है|
- इसकी जड़ का छाछ में थोडा गाढ़ा लेप बनाकर लगाने से भी आराम मिलता है|
- आक की जड़ की छाल तथा अडूसा त्वक को कांजी के साथ घोट कर या पीसकर लगाने से हाथीपांव में आराम मिलता है|
मिर्गी की समस्या में आक का सेवन (Aak for epilepsy)
- गुड़ के साथ श्वेत अर्क के पुष्पों को अच्छी तरह से मिलाकर घोट लें| अब इस घोटे गए मिश्रण की गोलियां बना लें| दिन में दो बार इसकी गोलियों का सेवन करने से मिर्गी की समस्या में काफी हद तक फायदा पहुँचता है|
- अर्क के पुष्प और काली मरीच से निर्मित गोलियां यदि रोगी को दि जाती है तो इस रोग में आराम मिलता है|
बिच्छु के काट लेने पर
- बिच्छु के काट लेने पर जहर शरीर में चढ़ने लगता है| ऐसे में अर्क की जड़ और सोंठ के बारीक चूर्ण में आक का दूध मिला कर कल्क बना लें| इस कल्क को प्रभावित स्थान पर लगाने से दर्द और जलन का समापन होता है|
जुखाम में लाभदायक (Aak for cold and cough)
- यदि आपको बार बार जुखाम से पीड़ित हो जाने की शिकायत बनी रहती है तो ऐसे में आक का सेवन आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है|
एडियों का दर्द समाप्त करें
- एडियों में दर्द होने पर आक के पत्तों को सेक कर थोड़ी देर एडियों पर बांध लें| कुछ ही दिनों में आपको दर्द से आराम मिलने लगेगा|
टी.बी. में (Aak for T.B.)
- अर्क का सेवन पुरानी से पुरानी खांसी को समाप्त करने की क्षमता रखती है| इसी कारण इसका सेवन टी.बी. जैसी बीमारी को भी समाप्त कर सकता है| वैद्य के निर्देशानुसार ही इसका सेवन करना उचित रहता है|
मधुमेह में (Aak for diabetes)
- अर्क की पत्ती का सेवन मधुमेह के लिए काफी लाभदायक होता है| अर्क के पुष्पों का काढ़ा बना कर इस रोग में लिया जा सकता है|
उल्टी में (Aak for vomit)
- यदि आपने किसी प्रकार का विषाक्त पदार्थ गलती से खा लिया हो तो ऐसे में वैद्य के निर्देशानुसार आक का सेवन करना चाहिए| इसके सेवन से उल्टी होगी जिससे विषाक्त पदार्थ बाहर निकाल जायेंगे|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Aak)
- जड़
- पत्ती
- फूल
- पंचांग
सेवन मात्रा (Dosage of Aak)
- चूर्ण – वैद्य के अनुसार
- वटी – वैद्य के अनुसार
- क्वाथ – वैद्य के अनुसार
सावधानियाँ –
- इसका सेवन यदि अधिक मात्रा में किया जाता है तो इससे उल्टी, दस्त हो सकते है| इसके अलावा मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है| इसी कारण इसे वैद्य की देखरेख में ही लेना चाहिए|
- यदि इसे घाव पर सही तरह से नही लगाया जाता है तो इससे विपरीत स्थिति उत्पन्न हो सकती है| ऐसे में पलाश की छाल का काढ़ा पीना चाहिए|
- आँखों के अन्दर इसका प्रयोग किसी भी स्थिति में नही करना चाहिए नही तो भयानक दुष्परिणाम दिखाई दे सकते है|
आक से निर्मित औषधियां
- अर्कलवण
- अर्कतेल
- अर्केश्वर