बबूल (Babul) के बारे में 22 आश्चर्यजनक तथ्य | Introduction | Benefits | Doses
बबूल का परिचय: (Introduction of Babul)
बबूल क्या है? (What is Babul ?)
आप सब बबूल से तो परिचित होंगे ही, क्योकि इसका उपयोग खिड़की, दरवाजे आदि चीज़ें बनाने में किया जाता है, और इसकी लकड़ी तथा तने का उपयोग कोयला बनाने में भी किया जाता है| इसका प्रयोग सिर्फ इनमे ही नही किया जाता है स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों में भी किया जाया है, जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे|
इसके दो कांटे एक साथ होने के कारण युग्म कंटक भी कहा जाता है| इसके अलावा शाखाये मजबूत होने के कारण दृढारूह, छोटे पत्तों वाली होने के कारण सूक्ष्म पत्री आदि नामो से भी प्रचलित है| आयुर्वेद में बहुत सारी औषधियों का प्रयोग किया जाता है पर आपने कभी सुना है की यह भी एक औषधी है और इसका प्रयोग हर बीमारी के इलाज के लिए किया जाता है, क्या आपको पता है इसका सबसे अधिक प्रयोग दांतों को साफ करने के लिए किया जाता है|
आयुर्वेद में इसे एक तरह का वरदान माना है क्योकि यह एक ऐसी जड़ी – बूटी है जिसका इस्तेमाल सिर से लेकर पैर तक की बीमारियों में किया जाता है| इसके औषधीय गुण एक या दो नही बल्कि कई सारे है| इसलिए अगर आप बीमारियों में इसका इस्तेमाल करते है तो आपको बहुत फायदा मिल सकता है| आइए जानते हैं कि जिस पेड़ को बहुत ही साधारण समझा जाता है, उसके कितने लाभ है|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Morphology of Babul)
इसका पेड़ लगभग 8 से 16 मीटर ऊँचा कांटेदार और सदा हरा भरा रहने वाला पेड़ होता है| इसके तने की छाल गहरी भूरी व दरारे दार तथा खुरदरी होती है| इसकी शाखाये सीधी व तना गोलाकार तथा धूसर रंग का होता है| इसके पत्ते छोटे तथा इमली के पत्ते जैसे जोड़ो में होते है| इसके काटे जोड़ो में होते है| इसके फूल चमकीले खुशबूदार व पीले रंग के तथा घंटी जैसे होते है| इसकी फली सफेद रंग की व टेढ़ी– मेढ़ी, चपटी बीज युक्त होती है| इसकी प्रत्येक फली में चपटे व गोलाकार, धूसर रंग के बीज होते है| इसके तने की छाल में अरेबिका नामक गोंद निकलता है| जो पीले रंग व कृष्ण रंग का होता है| इसका निर्यास या गोंद वातपित्त शामक होता है तथा स्निग्ध, मधुर, कषाय रस, मधुरविपाक और वीर्य में शीत होता है| इसका फूलकाल अगस्त से सितंबर तक तथा फलकाल जनवरी से अप्रैल तक होता है| बबूल की निम्न प्रजातियाँ पाई जाता है| जिनका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है|
- Acacia senegal (linn) willd
यह बबूल की प्रजाति का पेड़ है| यह छोटा वृक्ष होता है, जिसमें कांटे होते हैं| इसकी छाल पतली तथा गहरे भूरे रंग की होती है| पुराना हो जाने पर काले रंग के हो जाती है| इसके पौधे से रस निकलता है| जिसका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है|
2. Acacia arabica var. nilotica (Linn.) Benth.)
यह लम्बा, झाड़ीदार और कांटेदार वृक्ष होता है| इसके कांटे लम्बे तथा तीखे होते हैं| इसके पत्ते बबूल के पत्तों जैसे होते हैं, लेकिन उससे कुछ बड़े और गहरे हरे रंग के होते है| इसके फूल पीले रंग के होते हैं| इसकी फलियां लम्बी होती हैं| फलियां कच्ची अवस्था में हरे रंग की, चपटी तथा मुड़ी हुई होती हैं|
बबूल के पौषक तत्व (Nutrients of Babul)
- विटामिन
- आयरन
- जस्ता
- प्रोटीन
- वसा
- मेग्नीज
- गर्मियों के मौसम मी निकलने वाले सफेद गोंद में कैल्शियम, मैग्नीशियम,पौटेशियम, शर्करा जैसे तत्व पाए जाते है|
बबूल के सामान्य नाम (Babul common names)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Acacia nilotica |
अंग्रेजी (English) | Indian Arabic tree |
हिंदी (Hindi) | बबूर, बबूल, कीकर |
संस्कृत (Sanskrit) | बब्बूल, किङिकरात, सपीतक, आभा, युग्मकण्टक, दृढारूह, सूक्ष्मपत्ते, मालाफल |
अन्य (Other) | बबूल (उतराखण्ड ) बबुलो (उड़िया) बबूल (उर्दू) बबुल (कोकणी) बबूली (कन्नड़) बावल (गुजराती) करू बेलमरम (तमिल) तल्लतुम्म (तेलगु) बाबला (बंगाली) बबूल (नेपाली) |
कुल (Family) | Mimosaceae |
बबूल के आयुर्वेदिक गुण धर्म ( Ayurvedic Properties of Babul)
दोष (Dosha) | कफपित्तशामक (pacifies cough and pitta) |
रस (Taste) | कषाय (astringent) |
गुण (Qualities) | गुरु (heavy), रुक्ष (dry) |
वीर्य (Potency) | शीत (cold) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (pungent) |
अन्य (Others) | रक्तरोधक, व्रणरोपण, स्तम्भन, संकोचक |
बब्बूल/बबूल के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Benefits and usage of Babul)
दांतों के रोग में बबूल के फायदे (Babul for teeth)
- यदि आप दांतों के किसी रोग से परेशान है तो इसका प्रयोग कर दांतों के रोगो से छुटकारा पा सकते है| इसके गोंद में कैल्शियम अधिक पाया जाता है जो आपके दांतों को एक दम स्वस्थ रखता है|
- दांतों में दर्द होने पर बबूल की फली का छिलका लें| इसमें बादाम के छिलके की राख मिला लें| इसमें नमक मिलाकर मंजन करें| इससे दांतों का दर्द ठीक होता है|
- दांतों के दर्द में बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियां लें| सभी को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाए| इस चूर्ण से मंजन करने से दांतों के रोग दूर होते हैं|
टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए बबूल का प्रयोग (Babul for bones)
- यदि आपकी किसी भी कारण आपके शरीर में हड्डी टूट गई है तो इस की फली को अधिक मात्रा में लें| इनका चूर्ण बना लें| चूर्ण को रोज सुबह-शाम सेवन करने से टूटी हड्डी जुड़ जाती है, क्योकि इसमे कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है|
- इसके अलावा बराबर-बराबर मात्रा में बबूल की फली, त्रिफला (आमलकी, हरीतकी, बहेड़ा) तथा व्योष (सोंठ, मरिच, पिप्पली) के चूर्ण लें| इसमें बराबर मात्रा में गुग्गुलु मिलाकर सेवन करें| इससे भी हड्डियों के टूटने की बीमारी में मिलता है|
कमर दर्द में (Babul in back pain)
- यदि आप कमर दर्द से परेशान है तो इस औषधी की फली, छाल और गोंद को बराबर मात्रा में मिलाकर इसे पिस ले| फिर इस औषधी को दिन में तीन बार सेवन करने से कमर के दर्द से छुटकारा मिलता है|
घाव में (Healing Wounds)
- बबूल के पत्तो को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है यदि आपको भी चोट लग गई है और घाव हो गया है तो इसका उपयोग कर सकते है|
दाद में
- यदि आप भी दाद से पीड़ित है तो इस के फूलो पीसकर दाद पर लगाने से आप दाद तथा खुजली की समस्या से छूटकारा पा सकते है|
मधुमेह में बबूल (Babul for diabetes)
- यदि आप इस रोग से परेशान है इसके गोंद का प्रयोग कर सकते है इसके लिए बबूल के गोंद को पीसकर सेवन करने से मधुमेह में लाभ मिलता है|
उपदंश में
- बबूल के पत्तो के चूर्ण उपदंश के घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है| यदि आप भी इस रोग से ग्रस्त है तो इसका प्रयोग कर सकते है|
सूतिका में बबूल
- जो महिलाएं हाल,फिलहाल में मां बनी हैं| उनको होने वाली समस्याओं में बबूल के सेवन से लाभ होता है| इसकी छाल का चूर्ण बनाएं| इसमें काली मिर्च मिलाएं| दोनों को पीस लें| इसे सुबह-शाम खाएं| इस दौरान सिर्फ बाजरे की रोटी और गाय का दूध लें| इससे गंभीर सूतिका रोग में भी लाभ होता है| यदि आपको सूतिका काल सम्बन्धी कोई समस्या है तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत ही फायदेमंद होता है|
सफेद पानी में
- बबूल के तने की छाल का काढ़ा बनाकर सेवन करने से आपको सफेद पानी में राहत मिलती है| यदि किसी महिला को सफेद पानी की समस्या है तो इसका प्रयोग कर सकती है|
वीर्य के विकार में बबूल
- बबूल की फली को छाया में सुखाकर पीस लें| बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें| एक चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम रोज पानी के साथ लें। इससे वीर्य के विकार ठीक होते हैं|
मासिक विकार में
- यदि आपको मासिकधर्म के दौरान रक्तस्त्राव अधिक हो रहा है फिर दर्द हो रहा है तो आप बबूल का प्रयोग कर सकते है| बबूल के गोंद को गेहूं के साथ मिलाकर पीसे और इसको सुबह – शाम इसका सेवन करने से रक्तप्रदर या मासिक विकारो का शमन होता है|
कंठ के रोगो में (Babul for throat)
- बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़ की छाल लें| सबको बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास पानी में भिगो दें| सुबह छानकर रख लें| इससे गरारा करने से गले के रोग मिट जाते हैं|
सुजाक में
- बबूल की नई पत्तियों को पानी में डालकर रात को रख ले और सुबह इस पानी को पिने से सुजाक और पेशाब की जलन में लाभ मिलता है| यदि आप भी इस रोग से पीड़ित है तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत ही फायदेमंद होता है|
पीलिया में (Babul for jaundice)
- बबूल ले फूलो के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पीलिया में लाभ मिलता है|
दस्त या अतिसार में (Babul for diarrhea)
- यदि आपको अतिसार की समस्या है तो बबूल के पत्तो के रस को पिने से अतिसार में लाभ मिलता है|
- बबूल के पत्ते और शयामल जीरे को बराबर-बराबर मात्रा में लें| इसे पीसकर रात के समय पिने से कफज विकार के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है|
अधिक प्यास लगने पर बबूल
- यदि आपको बार – बार पानी पिने की इच्छा होती है तो बबूल की छाल के काढ़े में मिश्री मिलाकर पिने से दर्द या अधिक प्यास में लाभ मिलता है|
पेट की बीमारियों में (Babul for stomach)
- बबूल की छाल का काढ़ा बना लें| काढ़ा जब थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो इसे मट्ठे के साथ पिएं| इससे पेट की बीमारी में लाभ होता है| इस दौरान सिर्फ मट्ठे का सेवन करना चाहिए।
खांसी में (Babul for cough)
- बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं| इस में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है| यदि आपको भी खांसी की समस्या है तो यह प्रयोग कर सकते है|
सांस नली की सूजन में
- यदि आपको सांस लेने में तकलीफ है या फिर सांस नली में सूजन है तो बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का बनाकर इसमे मधु मिलाकर सेवन करने से सांस नली की सूजन तथा सांस संबंधित परेशानियों में लाभ मिलता है|
मुँहे के छालो में
- यदि आपके मुँहे में छाले हो गये है तो बबूल का प्रयोग कर सकते है| इसके लिए बबूल की छाल के काढ़े से गरारे करने से मुँहे के छालो में लाभ मिलता है|
आँखों के रोग में (Babul for eyes)
- बबूल के कोमल पत्तों को गाय के दूध में पीस लें| इसका रस निकालकर एक, दो बूंद आंखों में डालें| इससे आंखों के दर्द ठीक होते हैं| इससे आंखों की सूजन में भी लाभ होता है|
- आंखों से पानी बहने पर बबूल के पत्तों का काढ़ा बनाएं| इसमें शहद मिलाकर काजल की तरह लगाएं| इससे आंखों से पानी बहने की परेशानी ठीक होती है| यदि आपको भी आँखों संबंधित परेशानी है तो इसका उपयोग कर सकते है|
भूख बढ़ाने के लिए बबूल (Babul for increasing hunger)
- भूख की कमी या भोजन से अरुचि की समस्या को ठीक करने के लिए बबूल की फली का अचार लें| इसमें सेंधा नमक मिलाकर खिलाएं| इससे भूख बढ़ती है, और जठराग्नि प्रदीप्त होती है|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Babul)
- छाल
- पत्ती
- फली
- गोंद
- तना
बबूल की सेवन मात्रा (Dosages of Babul)
- चूर्ण -2 से 7 ग्राम
- गोंद – 3 से 6 ग्राम
- छाल का क्वाथ -50 से 100 मिली
बबूल से निर्मित औषधियां(Medicines manufactured with Babul)
- बबूलारिष्ट
- लवंगादी वटी
- दंत मंजन आदि|