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सरफोका (Sarphoka)

सरफोका (शरपुंखा) का परिचय: (Introduction of Sarphoka)

Table of Contents

सरफोका क्या है? (What is Sarphoka?)

क्या आप लीवर से संबंधित परेशानियों से परेशान है| सरफोका का इस्तेमाल करके लीवर से संबंधित परेशानियों से निजात पा सकते है| यह लीवर से लिए अमृत है| यह लीवर ही नही बल्कि कई सारे रोगो के लिए एक रामबाण औषधि है| इस औषधि का उपयोग करके पेट के रोगो से छुटकारा पा सकते है|

प्रकृति के वरदान से पृथ्वी पर ऐसी बहुत सारी औषधीय पाई जाती है| जिसका उपयोग प्राचीनकाल से रोगो के उपचार के रूप में प्रयोग किया आता आ रहा है| इनमे से यह सरफोंका भी एक औषधि है जिसका कई रोगो में प्रयोग में लिया जाता है|

इस औषधि के अनगिनत गुण है जिसका प्रयोग करके आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते है| इसके प्रयोग से आप कब्ज, बवासीर, पेचिश, गुल्म रोग, पेट दर्द, पेट के कीड़े, मूत्र रोग, दस्त की समस्या, त्वचा के रोग, सांस संबंधित रोग आदि में यह सरफोंका बहुत ही लाभकारी है|  इसके फायदे यही पर ही समाप्त नही होते है, बल्कि इस औषधि के बहुत सारे फायदे जिसके बारे में आज आपको विस्तार से परिचित करवायंगे| आइये इसके अन्य फायदों के बारे में|   

बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Sarphoka ki akriti)

यह समस्त भारत में पाए जाने वाला पौधा होता है| इसके फूलो के प्रकार से इसके दो भेद पाए जाते है|  श्वेतपुष्प और रक्त पुष्प शरपुंखा के नाम से लाल या बैंगनी रंग के फूलो वाली वनस्पति का प्रयोग किया जाता है| सुश्रु- संहिता के अनुसार के विष की चिकित्सा में धतूरे के साथ शरपुंखा का प्रयोग किया जाता है| इसके पत्तो को तोड़ने से इसके आगे का भाग बाण के समान होता है| 

शरपुंखा (Tephrosia purpurea (linn.) Pers.)

इस पौधे की लम्बाई 30 से 60 सेमी होती है| यह सीधा और अनेक शाखाओ वाला होता है| इसकी शाखाये फैली हुई होती है और तना गोलाकार होता है| इसके पत्ते लम्बे तथा मेथी के पत्तो के समान होते है| इसके फूल लाल तथा बैंगनी रंग के होते है| इसकी फली लम्बी, चौड़ी तथा मुडी हुई होती है| इसके बीज चिकने धूसर रंग के होते है|  इसका फूलकाल जुलाई से नवम्बर तक तथा फलकाल सितम्बर से जनवरी तक होता है|

श्वेतपुष्पी शरपुंखा (Tephrosia candida (Roxb.) DC.)

इसका पौधा एक से डेढ़ मीटर तक ऊँचा तथा अनेक सालो थ जीवत रहने वाला पौधा होता है| इसका पना कांटेदार तथा धूसर सफेद रंग का होता है| इसके पत्ते चौड़े तथा लम्बे होते है| इसके फूल सफेद रंग के होते है| इसकी फली लम्बी सीधी होती है| इसकी प्रत्येक फली में गहरे धब्बे दार, नुकीले अंडाकार, चिकने बीज होते है| इसका फूलकाल अक्टूबर से नवम्बर तक और फल दिसम्बर तक लगते है|   

सरफोका की प्रजातियाँ (Sarphoka ki prajatiya)

1. Tephrosia purpurea

2. Tephrosia candida

सरफोका के सामान्य नाम Herbal Arcade
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सरफोका के सामान्य नाम (Sarphoka common names)

वानस्पतिक नाम (Botanical Name) Tephrosia purpurea 
अंग्रेजी (English)Purple tephrosia
हिंदी (Hindi)शरपुंखा, सरफोंका, सरफोका
संस्कृत (Sanskrit)शरपुंखा, प्लीहशत्रु, कण्ठपुंखिका, श्वेतपुंखा, कंठालु, कालिका, वाणपुंखा, नीलीवृक्षाकृति
अन्य (Other)सरभूखा  (उर्दू) कोलोथियापोखा (उड़िया) फंकी  (कन्नड़) उन्पंखो (गुजराती) कोलिंगी (तमिल) विपलि (तेलगु) बननील गाछ (बंगाली) कांडे साकिनु (नेपाली) झोझरु (पंजाबी) कोलिन्नील  (मलयालम) उन्हाली  (मराठी)
कुल (Family)Fabaceae

सरफोका के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Sarphoka ke Ayurvedic gun)

दोष (Dosha) कफवातशामक (pacifies cough and vata)
रस (Taste) तिक्त (bitter), कषाय (ast.)
गुण (Qualities) लघु (light), रुक्ष (dry), तीक्ष्ण (strong)
वीर्य (Potency) उष्ण (hot)
विपाक(Post Digestion Effect) कटु (pungent)
अन्य (Others)शोथहर, जंतुघ्न, व्रणरोपण, रक्तरोधक, दन्त्य
Ayurvedic properties of Sarphoka Herbal Arcade
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सरफोका  के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Sarphoka ke fayde or upyog)

लीवर को स्वस्थ रखने के लिए (Sarphoka for healthy liver)

  • यदि आप लीवर से संबंधित समस्या से परेशान है तो सरफोका के पंचांग को मोटा, मोटा कूटकर इसे लेकर करीब एक गिलास पानी में उबाल कर काढ़ा बनाकर पीने से लीवर की समस्या को दूर कर लीवर को स्वस्थ रखने का काम करता है|

दांतों के रोग में (Sarphoka for teeth)

  • यदि आपके दांतों में किसी भी प्रकार का रोग है, यानि दांतों में कीड़े लग गये है, मसुडो से खून आते है तो तो इस औषधि का उपयोग कर दांतों के रोगो से छूटकारा पा सकते है| इसके लिए शरपुंखा की जड़ काढे में हरड़ की लुग्दी डालकर तेल में पकाएं, ठण्डा होने पर रूई के फोहे में लगाकर दांतों में लगाने से दांत दर्द का शमन होता है| दंत के रोगों में इसकी जड़  को कूटकर दुखते दांत के नीचे रखने से भी बहुत लाभ होता है|

गुल्म रोग में सरफोका 

  • शरपुंखा क्षार में समान भाग में हरड़ का चूर्ण मिलाकर भोजन के बाद सुबह शाम पिने से गुल्म रोग में लाभ होता है|

तिल्ली की वृद्धि की समस्या में (Sarphoka for spleen disease)

  • यदि आपकी तिल्ली की वृद्धि हो रही है और आप बहुत ही परेशान है तो इसे राहत पाने के लिए शरपुंखा की जड़ के पेस्ट को छाछ के साथ दिन में दो बार पिलाने से बढ़ी हुई तिल्ली कम हो जाती है|
  • लीवर एवं तिल्ली की वृद्धि में इसकी  जड़ को दातुन की तरह चबाकर इसका रस अन्दर उदर में उतारने से बहुत लाभ होता है|
  • शरपुंखा के पौधे को जड़ सहित उखाड़कर छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर सुबह शाम सेवन करने से प्लीहा रोग ठीक हो जाता है|

त्वचा के रोग में (Sarphoka for skin disease)

  • यदि आप त्वचा के किसी भी रोग से परेशान है तो शरपुंखा के बीजो के तैल लगाने से खुजली आदि त्वचा के रोग का समापन होता है|

चेहरे के फोड़े फुंसी में सरफोका 

  • यदि आपके चेहरे पर फोड़े फुंसी हो हो गए है तो शरपुंखा का काढ़ा बनाकर इसमे मधु मिलाकर सुबह – शाम को खाली पेट पिने से खून का शुद्धि करण होता है और फोड़े मिटते है|
  • चौट के कारण घाव हो गया है तो शरपुंखा की जड़ को पानी के साथ पीसकर इसमे मधु मिलाकर घाव पर लेप करने से घाव जल्दी से भर जाता है|

कुष्ठ रोग में (Sarphoka for leprosy)

  • यदि किसी को कुष्ठ रोग की समस्या है तो शरपुंखा के पत्तो के रस को दिन में दो तीन बार पिने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है| 

मधुमेह में (Sarphoka for diabetes)

आजकल की जीवन शैली की वजह से लोग मधुमेह का शिकार हो जाते है| इस रोग यानि डायबिटीज से यदि आप भी ग्रस्त है तो इसे राहत पाने के लिए सरफोका का प्रयोग कर सकते है|

ह्रदय की कमजोरी में लाभदायक (Sarphoka for heart)

  • यदि आपका ह्रदय कमजोर है और आपको बार –बार सांस की समस्या हो जाती है तो इसे राहत पाने के लिए इस औषधि का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है|

मलेरिया बुखार में सरफोका 

  •  यदि आपको मलेरिया का बुखार है| तो मलेरिया बुखार में शरपुन्खा के काढ़े के साथ गिलोय को मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से मलेरिया के बुखार में आराम आता है|

कफ के विकारो में (Sarphoka for cough)

  • कफज रोगों में आप शरपुन्खा के साथ तुलसी के पते और थोडा सा सोंठ का चूर्ण मिलकर इनका काढ़ा बना ले| इसे नियमित सुबह के समय सेवन करे| कफ के सभी विकारो में जल्दी ही आराम मिलेगा|

पेट के कीड़ो में (Sarphoka for stomach bugs)

  • बासी भोजन करने से या कीसी अन्य कारण से यदि आपके पेट में कीड़े हो गये है या पेट दर्द कर रहा है|  शरपुंखा की जड़ की छाल को समभाग काली मिर्च के साथ पीसकर इसकी गोली बनाकर एक एक  गोली सुबह  शाम को खाने से पेट दर्द तथा कीड़ो का शमन होता है|
  • इसके अलावा शरपुंखा के काढ़े में वायविडंग का चूर्ण मिलाकर रात में सोते समय पिने से बच्चों के पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं|

सूजन में (Sarphoka for swelling)

  • यदि आपको कीसी भी प्रकार की चौट लग गई है और आपकी सूजन नही उतर रही है तो यह औषधि आपकी सूजन को समाप्त करने के लिए बहुत ही उपयोगी है| इसके लिए इसके पत्तो के रस को सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन का शमन होता है|

रक्त विकार में (Sarphoka for blood disorder)

  • शरपुंखा की जड़ का काढ़ा बनाकर इसमे मधु मिलाकर पिने से रक्त विकारो में लाभ होता है|

खांसी में सरफोका 

  • यदि आपको मौसम बदला नही के खांसी की समस्या हो गई है, तो इसे राहत पाने के लिए शरपुंखा की सुखी जड़ का धुँआ सुंघने से खांसी में लाभ होता है|

मूत्र रोग में (Sarphoka for urinary disease)

  • यदि आप मूत्र रोग से पीड़ित है जैसे – पेशाब करते समय जलन. दर्द आदि की समस्या होती है तो शरपुंखा को पानी के साथ पीसकर इसमे काली मिर्च डालकर पिने से मूत्र रोग में बहुत ही लाभ होता है|

घेंघा रोग में (Sarphoka for goiter)

  • शरपुंखा की मूल को पानी में घिसकर गुनगुना करके लगाने से गण्डमाला में लाभ होता है

उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Sarphoka)

  • जड़
  • पत्ती
  • बीज
  • पंचांग
  • फली

सेवन मात्रा (Dosages of Sarphoka)

  • जूस -10 से 20 मिली
  • चूर्ण -3 से 6 ग्राम

चेतावनी-

  • शरपुंखा का ज्यादा मात्रा में सेवन उल्टी की समस्या हो सकती है| अतः वैद्यकीय चिकित्सा परामर्श अनुसार हि प्रयोग करे|