सोनापाठा : Indian trumpet tree (Sonapatha: Introcution, Benefits and Usages)
सोनापाठा का परिचय: (Introduction of Sonapatha)
सोनापाठा क्या है? (What is Sonapatha?)
श्योनाक या सोनापाठा के बारे में लोग कम ही जानते है| आयुर्वेद में काफी प्राचीन समय से यह औषधि काम में आती रही है| यह एक औषधि भिन्न भिन्न तरह के रोगों का शमन करने में काम में ली जा सकती है| आयुवेद में वृहत पंचमूल में इसका भी प्रयोग किया जाता है| यह औषधि मुख्य रूप से कफ और वात का शमन करने वाली होती है|
आज हम विस्तार से सोनापाठा के बारे में चर्चा करेंगे| जानेंगे कि यह औषधि किस प्रकार भिन्न भिन्न रोगों को दूर कर पाने में सहायक होती है| इसके बीज, फल, पत्तियां या यूँ कहे कि यह पूरा पौधा हि औषधि के रूप में काम में लिया जाता है| आइये आपको भी परिचित कराते है इस दिव्य औषधि से|
बाह्य स्वरुप (आकृति विज्ञान) (Morphology of Sonapatha)
इसका वृक्ष मध्यम आकार का होता है| इसकी छाल मुलायम होती है जिसका रंग कुछ हल्का भूरा दिखाई देता है| इसके पत्तें बड़े होते है| इसके फूलों का बाहरी भाग बैंगनी रंग का तथा आंतरिक भाग कुछ लाल गुलाबी रंग का होता है| इसके फल बड़े, तलवार के आकार के, आगे से नुकीले फलियों के रूप में होते है| बीज चपटे होते है जो मात्रा में काफी सारे होते है| इसमें फूल जून से अगस्त के मध्य तथा फल अक्टूबर से मई के मध्य आते है|
सोनापाठा के सामान्य नाम ( Common Names of Sonapatha)
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) | Oroxylum indicum |
अंग्रेजी (English) | Indian trumpet tree |
हिंदी (Hindi) | सोनापाठा, श्योनाक, सोनपत्ता |
संस्कृत (Sanskrit) | श्योनाक, नट, शुकनाश, दीर्घवृंत, अरलु, कटम्भर, भल्लूक, तन्तुरक |
अन्य (Other) | केरिंग (असमिया) अलंगी (कन्नड़) अच्छी (तमिल) नासोना (बंगाली) टोटोला (नेपाली) |
कुल (Family) | Bignoniaceae |


सोनापाठा के आयुर्वेदिक गुण धर्म (Ayurvedic Properties of Sonapatha)
दोष (Dosha) | कफवातशामक (pacifies kapha and vata) |
रस (Taste) | तिक्त (bitter), मधुर (Sweet), कषाय (Ast.) |
गुण (Qualities) | लघु (light), रुक्ष (dry) |
वीर्य (Potency) | उष्ण (hot) |
विपाक(Post Digestion Effect) | कटु (Pungent) |
अन्य (Others) | आमहर, अर्शशामक |

सोनापाठा के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Benefits and Usages of Sonapatha)
दस्त का शमन करे सोनापाठा (Sonapatha for diarrhea)
- यदि आपको दस्त की समस्या हो गई है तथा ठीक होने का नाम नही ले रही तो ऐसे में आप इस औषधि की छाल और कुटज नामक औषधि की छाल से निर्मित काढ़े का सेवन कर सकते है| इसका सेवन करने से आपको दस्त में जल्द ही अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे|
- उचित विधि से यदि सोनापाठाऔर इन्द्रजौ के पत्तों से निकाले गए रस में मोच रस मिलाकर दस्त में सेवन कराने से लाभ मिलता है| इस रस का एक छोटा चम्मच उचित मात्रा माना जा सकता है|
- यदि दूध के साथ इस औषधि के गोंद से निर्मित चूर्ण का सेवन किया जाता है तो इससे दस्त में लाभ लिया जा सकता है|
- औषधि की जड़ की छाल से निर्मित काढ़े का सेवन यदि उचित मात्रा में किया जाता है तो इससे दस्त पर रोक लगे जा सकती है|
पीलिया का शमन करे (Sonapatha for jaundice)
- एक ग्लास पानी में औषधि की कूटी हुई छाल को रात भर भिगो कर रख लें| सुबह खली पेट कपूर की दो टिक्की का चूर्ण बना कर निगल लें| लगभग २० मिनट बाद पानी को छान कर पी लें| नाश्ता या भोजन लगभग 120 मिनट बाद लें| यह सेवन विधि रोगी की जीर्णता और आयु के आधार पर बदल भी सकती है जो कुछ इस प्रकार है-
- 8-15 वर्ष के बच्चों के लिए – कपूर की एक टिकिया (50mg) तथा श्योनाक की छाल (75-100 ग्राम)
- 8 वर्ष से कम आयु तक के बच्चों के लिए – कपूर की टिकिया (25 mg) तथा श्योनाक की छाल (40-50 ग्राम)
- 8 दिन के शिशु के लिए – कपूर ड्राप (एक बूंद) तथा श्योनाक (6 बूंद, केवल एक बार दें)
- यदि पीलिया अधिक पुराना हो तो ऐसे में अधिकतम 7 दिन तक इसका सेवन करना चहिये|
जोड़ो के दर्द में फायदेमंद (Sonapatha for joints pain)
- संधि से जुड़े हुए दर्द में यदि इस औषधि की जड़ और सोंठ का फाँट बनाकर सुबह, शाम और दोपहर को लिया जाता है तो इससे गठिया, आमवात या अन्य कारणों से होने वाले जोड़ो के दर्द को दूर किया जा सकता है|
- जोड़ो में दर्द होने पर इसके पत्तों को प्रभावित स्थान पर गर्म करके बांधना चाहिए| इससे दर्द में आराम मिलता है|
अस्थमा और खांसी का शमन करे सोनापाठा (Sonapatha for asthma and cough)
- अदरक के रस और मधु में यदि सोनापाठा के चूर्ण को मिलाकर सेवन किया जाता है तो इससे अस्थमा में लाभ मिलता है| इसके अलावा यदि आप इस औषधि के गोंद से निर्मित चूर्ण को दूध के साथ लेते है तो इससे खांसी में भी लाभ मिलता है|
प्लीहा के विकारों में (Sonapatha for spleen disease)
- प्लीहा से जुड़े विकारों में यदि इस औषधि के पत्तों से निर्मित काढ़े का सेवन किया जाता है तो लाभ मिलता है|
जुखाम में सोनापाठा (Sonapatha for cold)
- सौंफ, दालचीनी, बला की जड़, श्योनाक, एरंड आदि द्रव्यों से धुम्रपान किया जाता है तो इससे जुखाम में लाभ लिया जा सकता है|
बुखार को दूर करे (Sonapatha for fever)
- श्योनाक की छाल से बने हुए लकड़ी के प्याले में रात को पानी भर कर यदि सुबह उसे पिया जाता है तो इससे विषम या मलेरिया ज्वर में काफी लाभ मिलता है|
बवासीर की समस्या का समाधान करे (Sonapatha for piles)
- औषधि की छाल, चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, करंज की छाल, सोंठ को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें| इस चूर्ण को यदि तक्र के साथ दिन में दो से तीन बार लिया जाता है तो इससे बवासीर या अर्श में लाभ मिलता है|
मुंह में होने वाले छालों का शमन करे (Sonapatha for mouth ulcers)
- इस औषधि की जड़ का काढ़ा बना कर कुल्ला करने से छालों का शमन किया जा सकता है|
प्रसूता के लिए सोनापाठा (Sonapatha for post pregnancy)
- प्रसव काल के बाद जिन स्त्रियों को बहुत अधिक पीड़ा हो रही हो तो इसके लिए श्योनाक आदि द्रव्यों से बनी गोलियों को दशमूल क्वाथ के साथ लें| कुछ दिनों तक इनका सेवन करने से कमजोरी और दर्द दोनों का हि शमन होता है|
उपयोगी अंग (भाग) (Important parts of Sonapatha)
- फल
- पत्ती
- बीज
- जड़
- तना
सेवन मात्रा (Dosage of Sonapatha)
क्वाथ – 15-30 ml
सोनापाठा से निर्मित औषधियां (Medicines Manufactured from Sonapatha)
- श्योनाक पुटपाक
- वृहत पंचमूल क्वाथ
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