आरोग्यवर्धिनी वटी: जाने वे 16 रोग जिन्हें इस औषधि के सेवन से खत्म किया जा सकता हैं|
आरोग्यवर्धिनी वटी का परिचय (inroduction of Arogyavardhini vati: Benefits, Dosage)
आरोग्यवर्धिनी वटी क्या हैं ? (Arogyavardhini vati kya hain?)
इस वटी को आरोग्यवर्धिनी गुटिका और आरोग्यवर्धिनी रस के नाम से भी जाना जाता हैं | इस वटी का कार्य व्यक्ति के जीवन में रोगों का अभाव या कमी करना हैं और व्यक्ति के जीवन के स्वास्थ्य को सुचारू रूप से चलाना हैं|
यह वटी शरीर के कई रोगों को समाप्त करने में व्यक्ति की बहुत अच्छी सहायता करती हैं |
आरोग्यवर्धिनी वटी वात, पित्त और कफ का संतुलन करती हैं | आयुर्वेद के अनुसार कई रोगों की उत्पत्ति इन तीनो दोषों का असंतुलन से मानी जाती हैं |
इसका सेवन कुष्ठ रोग, शरीर के किसी भी अंग की सूजन, मोटापा, पाचन तंत्र के विकार, जीर्ण ज्वर, आंतो और गर्भाशय की शुद्धी करने में किया जाता हैं |
वैसे तो यह औषधि अकेले ही कई रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती हैं परन्तु कुछ विशेष औषधियों के साथ इसका सेवन और भी प्रभावशाली हो जाता हैं |
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक (Arogyavardhini vati ke ghatak)
- शुद्ध पारा
- शुद्ध गंधक
- लौह भस्म
- अभ्रक भस्म
- ताम्र भस्म
- हरड
- आंवला
- बहेड़ा
- शुद्ध शिलाजीत
- शुद्ध गुग्गुल
- चित्रकमूल छाल
- कुटकी
- नीम की पत्तियों का रस
आरोग्यवर्धिनी वटी बनाने की विधि (Arogyavardhini vati banane ki vidhi)
इसको बनाने के लिए सबसे पहले पारे और गंधक की कज्जली बना लें | अब इसमें अन्य भस्मों, शिलाजीत और बची हुई औषधियों का चूर्ण बना कर मिला लें |
गुग्गुल को नीम की पत्ती के रस में दो दिन तक भिगो कर, हाथ से मसल कर अन्य औषधियां मिला कर मर्दन करे | अब इनकी गोलियां बना कर सुखा दें |
आरोग्यवर्धिनी वटी के फायदे (Arogyavardhini vati ke fayde)
कुष्ठ रोग में (for leprosy)
वात और कफ प्रधान कुष्ठ रोगों में इस औषधि का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता हैं | पुराने कुष्ठ रोगों में इसका सेवन कुछ अधिक लाभदायक नही होता हैं |
कुष्ठ रोग में इस औषधि के सेवन काल में सिर्फ और सिर्फ दूध का ही सेवन करना चाहिए |
कुष्ठ रोग में जब शरीर की त्वचा रुखी हो कर विकृत हो तथा उसे उस स्थान पर किसी प्रकार का स्पर्श महसूस नही होता और उसमे से पसीना अधिक निकलने लगता हैं तो इस स्थिति में आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ गंधक रसायन का प्रयोग करना चाहिए |
इसका सेवन करने से कुष्ठ रोग में बहुत जल्द ही लाभ मिलता हैं |
जब कभी रक्त के विकार के कारण लाल चकते पड़ना, खुजली होना, मवाद भर जाना ऐसी स्थिति में आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन महामंजिष्ठादि अर्क या नीम की छाल के क्वाथ के साथ करना चाहिए | इससे विशेष प्रकार का लाभ होता हैं |
रक्त और मांस की विकृति के कारण जब त्वचा रुखी हो कर फट जाती हैं तथा कभी कभी उसमे से मवाद भी निकलता हैं | थोडा सा खुजलने पर पुन्सियाँ हो कर पक जाती हैं | इस स्थिति में आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन दूध के साथ करने के बाद सरिवाद्यासव का प्रयोग करना चाहिए |
सूजन में (for inflammation)
आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन शरीर में किसी भी कारण आई किसी भी प्रकार की सूजन के लिए किया जा सकता हैं | यकृत, प्लीहा, गुर्दे, गर्भाशय, आंतो की सूजन, ह्रदय की सूजन और भी कई सारे शरीर के अंगो की सूजन को समाप्त करने के लिए यह औषधि बहुत उपयोगी हैं | सूजन को मिटाने के साथ साथ यह ह्रदय को बल प्रदान करने में भी सहायक होती हैं |
मोटापा कम करे (for loss weight)
यह औषधि मेद वृद्धि अर्थात शरीर में होने वाली चर्बी को नियंत्रित कर पाने में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त करती हैं अतः इसके द्वारा मोटापे को संतुलित किया जा सकता हैं | इसका सेवन की समयावधि में रोगी को केवल दूध का सेवन करायें तथा आरोग्यवर्धिनि वटी का सेवन महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ करें |
पाचन के विकार को समाप्त करें (for strong digestion)
इस औषधि में कई ऐसे तत्व मिले हुए हैं जो पाचन से जुड़े विकार जैसे कब्ज़, दस्त, एसिडिटी, भूख ना लगना, अपच, पेट भारी लगना, खाना खाने के बाद जी मचलना और वमन की इच्छा जैसे और भी कई विकारो को समाप्त करती हैं | यह वटी पाचक अग्नि को बढ़ाने में सहायक होती हैं जिससे पाचन से जुड़े विकार को भी समाप्त किया जा सकता हैं |
आंतो की सफाई करें
पाचन क्रिया के बेहतर न होने या ख़राब जीवनशैली के कारण जब आधा पचा हुआ भोजन आंतो में चिपका रह जाता हैं तो यह शरीर में विष उत्पन्न करने लगते हैं जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ जन्म ले लेती हैं | आरोग्यवर्धिनी वटी आंतो की सफाई करने के लिए एक चमत्कारी औषधि हैं |
आरोग्यवर्धिनी वटी के अन्य फायदे (Other benefits of Arogyavardhini vati)
- पुरानी बुखार में
- त्वचा रोगों में
- मल की शुद्धी करें
- एनीमिया में (लौह भस्म)
- त्रिदोष के संतुलन में
- वृक्क विकार में
- प्रमेह में
- हिक्का में
- पीलिया में
- मूत्र रोग में
- रक्त विकार में
आरोग्यवर्धिनी वटी की सेवन विधि (Arogyavardhini vati ki sevan vidhi)
- 2 से 4 गोली का सेवन रोग के अनुसार दिन में दो बार करना चाहिए |
- इसका सेवन जल, दूध, पुनर्नवादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ करना चाहिए |
आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ (Arogyavardhini vati ke sevan ki savdhaniya)
- इसका सेवन गर्भवती महिला और स्तनपान कराने वाली महिला को नहीं करना चाहिए |
- जिन व्यक्तियों का पित्त कुपित हो उन्हें भी इसके सेवन से परहेज करना चाहिए |
- इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरुर लें |
आरोग्यवर्धिनी वटी की उपलब्धता (Arogyavardhini vati ki uplabdhta)
- दिव्य आरोग्यवर्धिनी वटी (DIVYA PHARMACY AROGYAVARDHINI VATI)
- डाबर आरोग्यवर्धिनि वटी ( DABUR AROGYAVARDHINI VATI)
- बैधनाथ आरोग्यवर्धिनि वटी (BAIDYANATH AROGYAVARDHINI VATI)
- झंडू आरोग्यवर्धिनि वटी (ZANDU AROGYAVARDHINI VATI)
- धूतपापेश्वर आरोग्यवर्धिनि वटी (DHOOTPAPESHWAR AROGYAVARDHINI VATI)
Note- यदि आपका कोई प्रश्न है तो बेझिझक पूछें। आपको प्रत्येक उचित प्रश्न का जवाब मिलेगा| (If you have any question feel free to ask. We will respond to each valuable comment)
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