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औषधी दर्शन

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय): जाने अभी इसके सेवन से होने वाले 21 फायदों के बारे में

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) का परिचय (Introduction of Laxmivilas ras: Benefits, Dosage)

Table of Contents

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) क्या हैं? (Laxmivilas ras kya hai?)

यह एक आयुर्वेदिक औषधि हैं जो टेबलेट के रूप में होती हैं| लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) का उपयोग करने से बड़ी संख्या में रोगों का शमन होता हैं| सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों और प्रमेह रोगों को इस औषधि के सेवन से दूर किया जा सकता हैं|

यह ह्रदय और मस्तिष्क से जुडी समस्या में भी बड़ी मात्रा में फायदे करती हैं|
इसका सेवन करने से कान, आँख, नाक, मुख से जुड़े रोगों में लाभ होता हैं| लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) वात, पित्त और कफ को भी संतुलित करती हैं|

सभी प्रकार की खांसी यहाँ तक की टी.बी. को भी इस औषधि के माध्यम से सही किया जा सकता हैं| इस लेख में लक्ष्मीविलास रस के अनगिनत फायदों के बारे में बताया गया हैं|
यदि आप इस औषधि का सेवन इन में से एक दो या कुछ समस्याओं को दूर करने के लिए करते हैं फिर भी आपको इसके ढेरों फायदें होंगे|

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) के घटक (Laxmivilas ras ke ghatak)

  • अभ्रक भस्म
  • शुद्ध गंधक
  • शुद्ध पारा
  • कपूर
  • जावित्री
  • जायफल
  • विधारे के बीज
  • शुद्ध धतूरे के बीज
  • भांग के बीज
  • विदारीकन्द
  • शतावर
  • नागबला छाल
  • अतिबला
  • गोखरू
  • हिज्जल
  • पान का रस
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लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) बनाने की विधि (Laxmivilas ras banane ki vidhi)

इस औषधि को बनाने हेतु सबसे पहले पारा और गंधक की कज्जली बनाये| बाकी बची सारी औषधियों का बारीक चूर्ण बना कर इन सबको पान के रस में घोंट ले| अब इनकी गोलियां बना कर सुखा कर उपयोग में ले लें|

लक्ष्मीविलास रस के फायदे (Laxmivilas ras ke fayde)

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ह्रदय विकार में (for Heart disease)

इस औषधि का सेवन करने से ह्रदय की अनियमित धडकनों को संतुलित किया जा सकता हैं तथा उच्च रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता हैं|| ह्रदय के आवरणों, कपाटो और आलिन्द और निलय को मजबूती प्रदान करता हैं जिससे ह्रदय भी मजबूत होता हैं| इसके अलावा यह ह्रदय को शांति भी देती हैं|

कुष्ठ रोग (for leprosy)

लक्ष्मीविलास रस औषधि इतनी चमत्कारी औषधि होती हैं की इसके सेवन से 18 प्रकार के अर्थात सभी कुष्ठ रोगों को समाप्त किया जा सकता हैं|

प्रमेह रोग में

आयुर्वेद में 20 प्रकार के प्रमेह बताये गए हैं| कफ से जुड़े 10 प्रकार के प्रमेह, पित्त से जुड़े 6 प्रकार के प्रमेह और वात से जुड़े 4 प्रकार के प्रमेह होते हैं| मधुमेह को वातज प्रमेह का ही एक प्रकार माना गया हैं| इन सभी प्रमेह को समाप्त करने के लिए लक्ष्मीविलास रस का उपयोग किया जाता हैं और तो और इसका प्रयोग करने पर सफलता भी प्राप्त होती हैं|

गुदा रोग में (for piles)

गुदा से जुड़े रोग जैसे बवासीर, भगंदर रोगों को भी इस औषधि की सहायता से समाप्त किया जा सकता हैं| बवासीर 2 प्रकार की होती हैं खूनी और सूखी बवासीर| ये रोग कब्ज, मोटापे और गर्भावस्था के दौरान हो सकते हैं|

हाथीपांव में

इस रोग में व्यक्ति का पाँव फूलकर हाथी के समान हो जाता हैं| यह जरुरी नहीं हैं की इस रोग में पाँव ही फुले कभी कभी हाथ, स्तन, अंडकोश तथा शरीर के और भी अंग इससे ग्रसित हो सकते हैं| यह रोग आनुवंशिक भी हो सकता हैं| इस रोग में राहत पाने के लिए लक्ष्मीविलास रस का उपयोग फायदेमंद होता हैं|

गले की समस्या में

गले में सूजन आने पर इस औषधि का उपयोग उत्तम होता हैं| गलगंड रोग जिसे गलग्रह रोग भी कहा जाता हैं, को इस औषधि के द्वारा समाप्त किया जा सकता हैं| यह रोग होने पर गले में सूजन, निगलने में कठिनाई, गले में दर्द जैसी कई समस्याएँ आती हैं| इन सभी में लक्ष्मीविलास रस के सेवन से राहत मिल सकती हैं|

जोड़ो के दर्द में (for joint pain)

बढती उम्र के साथ जोड़ो में होने वाला दर्द हो या अन्य किसी भी उम्र में होने वाले जोड़ो के दर्द से मुक्ति पाने के लिए लक्ष्मीविलास रस का सेवन करना चाहिए| यह औषधि आमवात रोग जो यूरिक एसिड बढ़ने के कारण होता हैं, को भी समाप्त करने में सहायता करती हैं|

आँख, नाक, कान और मुख के रोगों में (for ear, nose and eyes disease)

इस औषधि का सेवन आँख, नाक, कान और मुख के रोगों में भी किया जाता हैं| यह आँखों की रोशनी बढाने, सामान्य सर्दी, जुखाम, कान से जुडी समस्या में काम में ली जाती हैं|

श्वसन से जुडी समस्या में (for breathing problem)

यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती हैं, फेफड़ो में जलन और सूजन, फेफड़ो की कमजोरी जैसी समस्या हो तो उन्हें मुख्य रूप से इस औषधि का सेवन करना चाहिए| यह औषधि कफ की मात्रा को संतुलित कर इन समस्या से राहत दिलाती हैं|

खांसी में (in cough)

आयुर्वेद के अनुसार होने वाली पांचो प्रकार की खांसी को इस औषधि के माध्यम से सही किया जा सकता हैं| यहाँ तक की इसका उपयोग टी.बी. को समाप्त करने में भी किया जाता हैं|

नपुसंकता समाप्ति में

इस औषधि का सेवन करने से पुरुषो के वीर्य में वृद्धि होती हैं जिससे नपुसंकता दूर होती हैं| वीर्य की वृद्धि के साथ साथ यह मुख का ओज भी बढाती हैं|

प्रसूता के शूल में

प्रसूता स्त्री के रोगों या किसी भी प्रकार के होने वाले दर्द में इस औषधि का उपयोग बहुत उपयुक्त रहता हैं|

ज्वर में (for fever)

किसी भी प्रकार का ज्वर हो जैसे जीर्ण ज्वर, टाइफाइड, विषम ज्वर, शीत ज्वर को समाप्त करने के लिए लक्ष्मीविलास रस का सेवन उचित होता हैं|

अन्य रोगों में

  1. सन्निपात में
  2. नासूर रोग में
  3. आंत्रवृद्धि में
  4. उदर रोगों में
  5. मेद वृद्धि को कम करें
  6. पसीने की दुर्गन्ध में
  7. मूत्र रोगों में
  8. रक्त विकार में

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) की सेवन विधि (Laxmivilas ras ki sevan vidhi)

  • 1 से 2 गोली का सेवन सुबह शाम करें|
  • इसका सेवन अदरक के रस, मिश्री, पीपल चूर्ण और शहद, शराब के साथ किया जा सकता हैं|

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) का सेवन करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ(Laxmivilas ras ke sevan ki savdhaniya)

  • इसका सेवन करने के तुरंत बाद दूध का सेवन ना करें| 1 घंटे के बाद दूध का सेवन किया जा सकता हैं|
  • गर्भवती महिला को इसके सेवन से परहेज करना चाहिए|
  • किसी भी व्यक्ति को इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरुर लेनी चाहिए|
  • यदि आप पहले ही किसी रोग से ग्रसित हैं तो इसकी जानकारी अपने चिकित्सक को दे कर ही इसका सेवन शुरू करें|
  • बच्चो की पहुँच से इसे दूर रखे|

लक्ष्मीविलास रस (नारदीय) की उपलब्धता (Laxmivilas ras ki uplabdhta)

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