सप्तविंशति गुग्गुल: फायदे (Saptavinshati guggul: benefits)
सप्तविंशति गुग्गुल का परिचय (Introduction of Saptavinshati guggul)
सप्तविंशति गुग्गुल क्या हैं? (Saptavinshati guggul kya hai?)
यह एक आयुर्वेदिक औषधि होती हैं जो कई रोगों को जड़ से समाप्त कर पाने में सक्षम होती हैं| अर्श, भगंदर, मूत्र रोग, पसलियों में होने वाला दर्द, हाथी पाँव, कृमि, कुष्ठ और पथरी जैसे कई और भी रोगों का समापन सप्तविशंति गुग्गुल का सेवन करके किया जा सकता हैं |
इस औषधि में त्रिकटु होता हैं जो गर्म तासीर का होता हैं तथा यह बवासीर, भगंदर, और मूत्र रोगों में काम में लिया जाता हैं| त्रिफला भी इसका घटक होता हैं जो पाचन तंत्र पर सकारात्मक रूप से प्रभाव डालता हैं| इसके अतिरिक्त गिलोय सूजन, घाव जैसी अनगिनत समस्याओं में फायदे करती हैं|
इन जैसी और भी औषधियों का मिश्रण बना कर सप्तविंशति गुग्गुल को तैयार किया जाता हैं जिसके कारण यह और भी प्रभाशाली रूप से कार्य करती हैं|
सप्तविंशति गुग्गुल के घटक द्रव्य (Saptavinshati guggul ke ghatak dravya)
- त्रिकटु
- त्रिफला
- नागरमोथा
- वायविडंग
- गिलोय
- चित्रकमूल
- कचूर
- बड़ी इलायची
- पीपलामूल
- हाऊबेर
- देवदारु
- तुम्बुरु
- पोहकरमूल
- चव्य
- इन्द्रायण की जड़
- हल्दी
- दारुहल्दी
- वीडनमक
- काला नमक
- यवक्षार
- सज्जीखार
- सैंधा नमक
- गज पीपली
- शुद्ध गुग्गुल
- घी
सप्तविंशति गुग्गुल बनाने की विधि (Saptavinshati guggul banane ki vidhi)
इस औषधि को बनाने के लिए घी को छोड़कर बाकी बची सारी औषधियों को अच्छे से कूट कर चूर्ण बना लें| अब कूटे हुए गुग्गुल में थोडा घी मिला कर थोडा थोडा चूर्ण मिला कर कूटते जाये| जब यह गोली बनाने लायक हो जाये तो इसकी गोलियां बना कर सुखा कर रख लें|
सप्तविंशति गुग्गुल के फायदे (Saptavinshati guggul ke fayde)
अर्श में (for piles)
अर्श रोग को बवासीर या पाइल्स भी कहा जाता हैं| यह रोग गुदा से जुड़ा हुआ हैं जिसमे गुदा द्वार पर बादी वाले या खूनी मस्से हो सकते हैं| यह रोग मोटापे, कब्ज़ होने से और गर्भावास्था के दौरान अधिक हो सकता हैं| सप्तविंशति गुग्गुल का सेवन इस रोग में काफी आराम मिलता हैं| यह औषधि गुदा द्वार से जुड़े सभी रोगों का शमन करती हैं|
भगंदर रोग में (for fisher)
यह रोग भी गुदा द्वार से ही जुड़ा हुआ हैं| इस रोग में गुदा द्वार या नली में फोड़ा हो जाता हैं| यह फोड़ा आगे चलकर घाव में बदल जाता हैं| इससे मल त्याग में बहुत परेशानी आती हैं| मल त्याग करते समय बहुत अधिक दर्द होता हैं| इस रोग से छुटकारा पाने के लिए यह औषधि एक कारगर औषधि हैं |
मूत्र रोगों में (for urinary disease)
यह औषधि मूत्र से जड़ी हुई सभी प्रकार की समस्याओं का इलाज़ करती हैं| मूत्र पथ में संक्रमण, मूत्र की अधिकता या कम आना, बार बार मूत्र त्यागना, मूत्र त्यागते समय बहुत अधिक दर्द होना, मूत्र त्याग के बाद बूंद बूंद टपकना, मूत्राशय भरा भरा लगना जैसे कई रोगों में इसका सेवन करने से आराम मिलता है|
पसलियों के दर्द में
किसी चोट या कमजोरी के कारण पसलियों में में होने वाला दर्द, या सीने में जलन, अपच की समस्या, किडनी से जुडी किसी अन्य समस्या के कारण पसलियों में होने वाला किसी भी प्रकार का दर्द हो तो सप्तविंशति गुग्गुल का सेवन करने से यह दर्द से आराम दिलाती हैं|
हाथीपांव में
यह रोग होने पर व्यक्ति में पाँव या हाथ, स्तन या अंडकोश आदि अंग फूल जाते हैं | रोगी का पांव फूलकर हाथी के समान हो जाता हैं इसी कारण इसे हाथी पाँव की बीमारी कहा जाता हैं| इसे फीलपांव या श्लीपद भी कहा जाता हैं| इस स्थिति से बाहर निकलने में सप्तविंशति गुग्गुल औषधि की सहायता लेनी चाहिए| यह इस रोग को समाप्त कर पाने में सहायता करती हैं|
ज्वर में (for fever)
मौसम के बदलने पर या सामान्य रूप से आने वाला ज्वर यदि नही जा रहा हैं तो इसका उपयोग उत्तम होता हैं| यह औषधि पुराने बुखार को खत्म करने में भी सहायक होती हैं|
कृमियों का नाश करें (for stomach bugs)
दूषित खाद्य पदार्थो का सेवन करने से जब कृमि हमारे शरीर में आ जाते हैं तो मनुष्यों द्वारा खाए गए भोजन का अधिकतर पोषण कृमि ग्रहण कर लेते हैं| इससे मनुष्य कमजोर हो जाता हैं| कृमियों की समाप्ति के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए| यह कीड़ो को मार कर मनुष्यों को पोषण प्रदान करती हैं|
कुष्ठ रोग में (for leprosy)
कुष्ठ चर्म रोग से जुड़ा हुआ हैं| आयुर्वेद में अलग अलग तरह के कुष्ठ रोग बताये गए हैं| यह रोग त्वचा पर नकारात्मक रूप से असर डालता हैं जैसे त्वचा पर घाव आदि| यदि इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाये तो यह और भयंकर रूप ले सकता हैं| इस रोग में यदि सप्तविंशति गुग्गुल का सेवन किया जाये तो काफी लाभ मिलता हैं|
इसके अतिरिक्त लाल चकते, सफ़ेद चकते, शरीर पर होने वाले दाने, दाद, खाज, खुजली जैसे त्वचा रोगों को भी इसके सेवन से मिटाया जा सकता हैं|
पथरी में for calculus
यह औषधि मूत्र रोगों को समाप्त करती हैं| और उसके साथ ही पथरी को भी मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती हैं|
सप्तविंशति गुग्गुल के अन्य फायदे (Other benefits of Saptavinshati guggul)
- नासूर में
- पेडू के दर्द में
- ह्रदय रोगों में
- त्वचा रोगों में
- नसों के दर्द में
- वात रोगों में
- मुंह के दर्द में
- छाती के दर्द में
- पेट दर्द में
- आमविष को समाप्त करने में
- खांसी आदि में|
सप्तविंशति गुग्गुल की सेवन विधि (Saptavinshati guggul ki sevan vidhi)
- 2 से 4 गोली का सेवन दिन में दो बार सुबह और शाम खाना खाने के बाद करना चाहिए|
- इसका सेवन शहद के साथ करें तथा ऊपर से मंजिष्ठादि क्वाथ का सेवन करें|
सप्तविंशति गुग्गुल का सेवन करते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ Saptavinshati guggul ke sevan ki savdhaniya
- किसी भी व्यक्ति को औषधि का सेवन करने से किसी अच्छे चिकित्सक की सलाह जरुर लेनी चाहिए|
- इसका सेवन अधिक मात्रा में नही करना चाहिए|
- गर्भवती महिला को इस औषधि के सेवन से बचना चाहिए|
- इसकी तासीर गर्म होती हैं इसलिए पित्त प्रधान वाले व्यक्तियों को इसका सेवन ध्यान से करना चाहिए|
सप्तविंशति गुग्गुल की उपलब्धता (Saptavinshati guggul ki uplabdhta)
- बैधनाथ सप्तविंशति गुग्गुल (baidyanath Saptavinshati guggul)
- दिव्य फार्मेसी सप्तविंशति गुग्गुल (divya pharmacy Saptavinshati guggul)
- बेसिक आयुर्वेदा सप्तविंशति गुग्गुल (basic ayurveda Saptavinshati guggul)
- डाबर सप्तविंशति गुग्गुल (dabur Saptavinshati guggul)
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